नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया शिमला समझौते के बयान को लेकर फिर से सोशल मीडिया पर बेनजीर भुट्टो के अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला दौर की तस्वीरें और बातें शेयर की जाने लगी हैं. लेकिन इनमें सबसे दिलचस्प बात है कि इस दौरे के लिए बेनजीर भुट्टो ने उधार के कपड़े पहने, किसी और से कपड़े लिए और एक दिन उनकी ख्वाहिश पर शिमला में ही मीना कुमारी की फिल्म पाकीजा का एक स्पेशल शो भी रखा गया था.
बेनजीर इस दौरे को लेकर काफी नर्वस थीं और उसकी एक वजह ये भी थी कि वो उन दिनों लंदन में पढ़ रही थीं. ऐसे ट्रेडीशनल कपड़े पहनने की उन्हें आदत ही नहीं थी और उनके पास ऐसे कपड़े थे भी नहीं. अब जल्दी में क्या हो सकता था? तो कुछ कपड़े उन्होंने अपनी एक सहेली से लिए और दो खास मौकों के लिए अपनी छोटी बहन सनम और अपनी मां से लिए.
पहला खास मौका था भारत की सरजमीं पर कदम रखने का, 28 जून 1972 की तारीख थी. शिमला में उनका स्वागत खुद इंदिरा गांधी ने किया, जो एक साड़ी पर रेनकोट पहनकर आई थीं. बेनजीर के अस्सलाम वालेकुम का जवाब बीएम इंदिरा ने नमस्ते से दिय़ा था. इधर जबकि बेनजीर प्लेन से उतरीं तो एक चुस्त सलवार सूट में, उन्होंने कोई दुपट्टा तक नहीं डाल रखा था. काफी मुश्किल भी थी उनके लिए, कोई भी ऐसा कपड़ा वो कैरी नहीं करना चाहती थी, जिससे वो असहज हों. ये सलवार सूट उन्हें इस मौके के लिए खास तौर पर छोटी बहन सनम ने दिया था.
दूसरा खास मौका था 30 जून को जब पीएम इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी डेलीगेशन को एक वर्किंग डिनर दिया था. इस मौके पर खास तौर पर बेनजीर भुट्टो ने एक सिल्क की साड़ी पहनी थी. बड़ी मुश्किल से तो वो उसे बांधना सीख पाई थीं. ये साड़ी बेनजीर की मां की थी, और ऐसे ही किसी मौके के लिए उन्होंने बेनजीर को दिया था. पूरे डिनर के दौरान बेनजीर नर्वस नजर आईं, एक तो साड़ी पहन रखी थी, दूसरे इंदिरा गांधी लगतार बेनजीर को घूरे जा रही थीं. ऐसा एक इंटरव्यू में खुद बेनजीर ने बाद में कभी बताया था.
पांच दिन तक पाकिस्तानी डेलीगेशन भारत में रहा. इस दौरान सारे अधिकारी और बेनजीर के पिता तो शिमला समझौते की शर्तों को लेकर मीटिंग्स में ही व्यस्त रहे, लेकिन बेनजीर बोर हो रही थीं तो भारत की तरफ से दो अधिकारियों की ड्यूटी उनकी सुरक्षा और उनकी जरूरतों के लिए लगा दी गई थी. जिनको नहीं पता, वो जान लें कि शिमला समझौता 1971 के युद्ध के बाद हुआ था, जब बांग्लादेश के लिए हुए 1971 के युद्ध के बाद भारत ने 90 हजार पाकिस्तानी कैदियों को छोड़ा था और भारत पाक ने ये तय किया था कि कभी भी दोनों देशों के बीच विवाद होगा तो बिना तीसरे पक्ष के आपस में उसे सुलझाएंगे.
बेनजीर के साथ जिन दो अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई थी उनमें एक थे एमके काव, जो उन दिनों हिमाचल में ही तैनात थे और दूसरी थीं आईएफएस अधिकारी वीना दत्ता. बेनजीर ने उनसे कहा कि उन्हें ‘पाकीजा’ फिल्म देखनी है. उन्होंने फौरन बंदोबस्त किया और शिमला के रिट्ज टॉकीज में पाकीजा का एक स्पेशल शो बेनजीर भुट्टो के लिए रखा गया था. पूरे हॉल में केवल तीन लोग थे, एम के काव, वीना दत्ता और बेनजीर भुट्टो. एम के काव ने एक इंटरव्यू में ये बात बताई थी. बेनजीर का ये पहला भारत दौरा था, जिसमें कि वो एक नेता नहीं बल्कि एक नेता की बेटी के तौर पर भारत आई थीं, और आज भी ये चर्चा में रहता है.
परवेज मुशर्रफ का दावा- बेनजीर भुट्टो और मुर्तजा भुट्टो की हत्या में था जरदारी का हाथ
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