पिछड़ों-दबे-कुचलों के उन्नायक, बिहार के शिक्षा मंत्री, एक बार उपमुख्यमंत्री (5.3.67 से 31.1.68) और दो बार मुख्यमंत्री (दिसंबर 70 – जून 71 एवं जून 77 – अप्रैल 79) रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर (24.1.1924 – 17.2.88) के जन्मदिन की आज 94वीं वर्षगांठ है. आज़ादी की लड़ाई में वे 26 महीने जेल में रहे, फिर आपातकाल के दौरान रामविलास पासवान और रामजीवन सिंह के साथ नेपाल में रहे. 1952 में बिहार विधानसभा के सदस्य बने. शोषितों को चेतनाशील बनाने के लिए वो अक़्सर अपने भाषण में कहते थे, ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है.’
बिहार में 1978 में हाशिये पर धकेल दिये वर्ग के लिए सरकारी रोज़गार में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू करने पर उन्हें क्या-क्या न कहा गया. मां-बहन-बेटी-बहू को भद्दी गालियों से नवाज़ा गया. अभिजात्य वर्ग के लोग उन पर तंज कसते हुए ये भी बोलते थे, ‘कर कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी धर उस्तुरा. ये आरक्षण कहां से आई, कर्पूरिया की माई बियाई. MA-BA पास करेंगे, कर्पूरिया को बांस करेंगे. दिल्ली से चमड़ा भेजा संदेश, कर्पूरी बाल (केश) बनावे, भैंस चरावे रामनरेश.’
उन पर तो मीडियानिर्मित किसी जंगलराज के संस्थापक होने का भी आरोप नहीं था, न ही किसी घोटाले में संलिप्तता का मामला. बावजूद इसके, उनकी फ़जीहत की गई. इसका समाजशास्त्रीय विश्लेषण तो होना चाहिए. आख़िर कहां से यह नफ़रत और वैमनस्य आता है? आज़ादी के 70 बरस बीत जाने और संविधान लागू होने के 68 बरस के बाद भी मानसिकता में अगर तब्दीली नहीं आई, तो इस पाखंड से भरे खंड-खंड समाज के मुल्क को अखंड कहके गर्वोन्मत्त होने का कोई मतलब नहीं.
एक बार वो निधन से ठीक तीन महीने पहले एक कार्यक्रम में शिरकत करने अलौली (खगड़िया) आये थे. वहां मंच से वो बोफोर्स पर बोलते हुए राजीव गांधी के स्विस बैंक के खाते का उल्लेख कर रहे थे. कर्पूरी जी ने भाषण के दौरान ही धीरे से एक पुर्जे (रेल टिकट) पर लिखकर ‘कमल’ की अंग्रेज़ी जानना चाहा. मंच पर बैठे लोगों ने कर्पूरी जी की किताब- कितना सच, कितना झूठ बंटवा रहे लोकदल के ज़िला महासचिव हलधर प्रसाद को ज़ल्दी से बुलवाया. फिर उसी स्लिप पर उन्होंने ‘लोटस’ लिख कर कर्पूरी जी की ओर बढ़ाया और कर्पूरी जी राजीव गांधी को लपेटते रहे कि राजीव मने कमल, और कमल को अंग्रेजी में लोटस बोलते हैं. इसी नाम से स्विस बैंक में खाता है श्री गांधी का. अपना ही अनोखा अंदाज़ था कर्पूरी जी का.
1990 में अलौली में लालू प्रसाद का पहला कार्यक्रम था मिश्री सदा कालिज में. कर्पूरी जी को निराले ढंग से याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘जब कर्पूरी जी आरक्षण की बात करते थे, तो लोग उन्हें मां-बहन-बेटी की गाली देते थे और जब मैं रेज़रवेशन की बात करता हूं, तो लोग गाली देने के पहले अगल-बगल देख लेते हैं कि कहीं कोई पिछड़ा-दलित-आदिवासी सुन तो नहीं रहा है. ये बदलाव इसलिए संभव हुआ कि कर्पूरी जी ने जो ताक़त हमको दी, उस पर आप सबने भरोसा किया है.’ किसी दलित-पिछड़े मुख्यमंत्री को बिहार में कार्यकाल पूरा करने नहीं दिया जाता था. श्रीकृष्ण सिंह के बाद सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा करने वाले लालू प्रसाद पहले मुख्यमंत्री थे.
70 के दशक के उत्तरार्द्ध (78) में कर्पूरी ठाकुर सिर्फ़ सिंचाई विभाग में 17000 रिक्तियों (वैकेन्सी) के लिए आवेदन आमंत्रित करते हैं और एक सप्ताह भी नहीं बीतता है कि रामसुंदर दास को आगे करके ज्ञानी-ध्यानी लोग उनकी सरकार गिरवा देते हैं. ऐसा अकारण नहीं होता है. पहले होता ये था कि बैक डोर से अस्थायी बहाली कर दी जाती थी, बाद में उसी को नियमित कर दिया जाता था. एक साथ इतने लोग फेयर तरीके से ओपन रिक्रूटमेंट के ज़रिये बहाल हों इस पूरी व्यवस्था पर कुंडली मारकर बैठे कुछ लोग भला क्यों कर पचाने लगे, सो सरकार गिराना व कर्पूरी की मां-बहन करना ही उन्हें सहल जान पड़ा. आज भी विश्वविद्यालय के किरानी, चपरासी, मेसकर्मी से लेकर समाहरणालय-सचिवालय तक के क्लर्क आपको कुछ ख़ास जातियों से ताल्लुक़ात रखने वाले आसानी से मिल जायेंगे.
एक बार लालू प्रसाद ने कर्पूरी जी की किताब ‘कितना सच, कितना झूठ’ मांगी थी. हलधर प्रसाद बताते हैं कि उन्होंने घर में बची आख़िरी प्रति 1997 में मुख्यमंत्री आवास जाकर उन्हें भेंट कर दी. इस किताब में कर्पूरी जी ने रामविलास पासवान और रामजीवन सिंह को जमके कोसा है. हुआ यूं कि आपातकाल के दौरान नेपाल में कर्पूरी जी के साथ रामविलास जी और रामजीवन सिंह भूमिगत थे. वहां जिस अध्यापिका के यहां ये लोग ठहरे थे, उन्होंने कथित रूप से कर्पूरी जी के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाया था, मुक़दमा भी किया था. पासवान जी और रामजीवन सिंह ने उस अफ़वाह को काफी तूल दिया. वो अध्यापिका बिहार भी आती रहीं. कर्पूरी जी इन दोनों आदमी के आचरण से इतने दु:खी थे कि एयरपोर्ट पर उतरते ही दोनों को लोकदल से निष्कासित कर दिया. ये वही पासवान थे जिन्हें भागलपुर में हुए पार्टी सम्मेलन में कर्पूरी जी ने “भारतीय राजनीति का उदीयमान नक्षत्र” कहकर संबोधित किया था.
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