नई दिल्ली : बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल एमडी असदुज़मन खान ने हाल ही में देश के संविधान में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों का सुझाव दिया है, जिसमें ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द को हटाने की मांग भी शामिल है। उनके अनुसार, बांग्लादेश की 90% मुस्लिम आबादी को देखते हुए संविधान में यह बदलाव किया जाना चाहिए ताकि धार्मिक पहचान […]
नई दिल्ली : बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल एमडी असदुज़मन खान ने हाल ही में देश के संविधान में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों का सुझाव दिया है, जिसमें ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द को हटाने की मांग भी शामिल है। उनके अनुसार, बांग्लादेश की 90% मुस्लिम आबादी को देखते हुए संविधान में यह बदलाव किया जाना चाहिए ताकि धार्मिक पहचान को और स्पष्टता मिल सके। कोर्ट में 15वें संविधान संशोधन पर सुनवाई के दौरान असदुज्जमां ने कहा कि संविधान को लोकतंत्र का समर्थन करना चाहिए न कि किसी तानाशाही का।
असदुज़मन ने संविधान के कई अन्य प्रावधानों में बदलाव का सुझाव देते हुए ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा देने वाले प्रावधान पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि शेख मुजीबुर रहमान का योगदान महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे कानून बनाकर लागू करना राष्ट्रीय एकता में बाधा बन सकता है। इसके अलावा उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 7A और 7B की भी आलोचना की, जो संवैधानिक बदलावों को रोकते हैं और लोकतांत्रिक सुधारों में बाधा खड़े करते हैं। उन्होंने इन प्रावधानों को लोकतंत्र के खिलाफ और सत्ता के केंद्रीकरण की ओर ले जाने वाला बताया।
हाल ही में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हमले बढ़े हैं। सुरक्षा और अधिकारों की मांग को लेकर चटगाँव में करीब 30,000 हिंदू प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन किया। अगस्त से ही हज़ारों हिंदुओं पर हमले और उत्पीड़न की खबरें आ रही हैं, जो वहां की नई अंतरिम सरकार की सुरक्षा प्रदान करने में विफलता को दर्शाता है।
भारत ने बांग्लादेशी सरकार से अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की सुरक्षा की अपील की है। चटगाँव में आदिवासी समुदाय के घरों और दुकानों में आगजनी की हालिया घटनाओं के बाद धार्मिक तनाव और बढ़ गया है। इस तनाव ने बांग्लादेश में धार्मिक विविधता और आपसी सहिष्णुता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल का यह सुझाव बांग्लादेश के राजनीतिक और धार्मिक ढांचे में बड़े बदलाव का संकेत देता है। हालाँकि, इससे देश में धार्मिक असहिष्णुता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हनन का खतरा भी बढ़ सकता है, जिस पर भारत समेत अन्य पड़ोसी देशों की प्रतिक्रिया हो सकती है। इस बदलते परिदृश्य में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना वहां की सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
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