LJP election symbol removed : चुनाव आयोग ने जब्त किया लोक जनशक्ति पार्टी का चुनाव चिन्ह

बिहार. बिहार राजनीती में चल रही चाचा-भतीजे की लड़ाई में लोक जान शक्ति पार्टी को बड़ा नुक्सान हो रहा है. रामविलास पासवान के जाने के बाद से ही पार्टी में सियासत तेज़ हो गई है. दरअसल, चुनाव आयोग ने विवाद बढ़ता देख LJP का चुनाव-चिह्न ही जब्त ( LJP election symbol removed ) कर लिया […]

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LJP election symbol removed : चुनाव आयोग ने जब्त किया लोक जनशक्ति पार्टी का चुनाव चिन्ह

Aanchal Pandey

  • October 2, 2021 9:38 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

बिहार. बिहार राजनीती में चल रही चाचा-भतीजे की लड़ाई में लोक जान शक्ति पार्टी को बड़ा नुक्सान हो रहा है. रामविलास पासवान के जाने के बाद से ही पार्टी में सियासत तेज़ हो गई है. दरअसल, चुनाव आयोग ने विवाद बढ़ता देख LJP का चुनाव-चिह्न ही जब्त ( LJP election symbol removed ) कर लिया है.

रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को लेकर चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान में छिड़ी लड़ाई में लोजपा को बड़ा नुकसान हो गया और चुनाव आयोग ने पार्टी का चुनाव चिह्न बंगला जब्त कर लिया. चुनाव आयोग के मुताबिक पशुपति पारस या चिराग पासवान के दो समूहों में से किसी को भी लोजपा के प्रतीक चिह्न का उपयोग करने की अनुमति नहीं होगी और अब दोनों को नया नाम व सिंबल चुनना होगा.

LJP के दोनों ही गुट एक ही पार्टी के चिह्न का करते थे इस्तेमाल

बता दें कि LJP के दोनों ही गुट एक ही पार्टी-चिह्न का उपयोग कर रहे थे. इसे लेकर लोक जनशक्ति पार्टी के एक गुट अध्यक्ष चिराग पासवान ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर दावा किया था कि पार्टी का “बंगला” चुनाव चिह्न है. उन्होंने चुनाव आयोग से उपचुनाव के लिए नामांकन की तारीखों से पहले अपना रुख स्पष्ट करने का आग्रह किया था. इसके बाद शनिवार को चुनाव आयोग ने इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करते हुए चुनाव चिह्न (बंगला) को फ्रीज कर दिया.

इससे पहले 2020 के विधानसभा चुनाव में, चिराग पासवान ने NDA से नाता तोड़कर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ एक सीट जीत पाये और वह विधायक भी जल्द ही जेडीयू में शामिल हो गया. उसके बाद उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने उन्हें इस हार के लिए दोषी ठहराते हुए पार्टी को विभाजित कर दिया और खुद को लोक जन शक्ति पार्टी का अध्यक्ष घोषित कर दिया था. उसके बाद से ही चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों पार्टी में अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिशों में जुटे हैं.

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