दक्षिण भारत में राजनीति के दिग्गज और दलित और पिछड़ों की आवाज कहे जाने वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) चीफ एम. करुणानिधि का लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया है. उनकी सेहत पिछले काफी समय से खराब चल रही थी और वे चेन्नई के कावेरी अस्पताल में भर्ती थे. साल 1924 में जन्में एम. करुणानिधि तमिलनाडु के 5 बार मुख्यमंत्री रहे हैं. राज्य में दलितों की आवाज उठाने के लिए करुणानिधि 'पेरियार' के 'आत्मसम्मान आंदोलन' और द्रविड़ लोगों के 'आर्यन ब्राह्मणवाद' के खिलाफ आंदोलन में शामिल रह चुके हैं.
चेन्नई. दक्षिण भारत की राजनीति में एक दिग्गज नाम और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) चीफ एम. करुणानिधि ने लंबी बीमारी के बाद चेन्नई के कावेरी अस्पताल में अंतिम सांस ली हैं. अस्पताल के बाहर उनके पार्टी कार्यकर्ता और समर्थकों की भीड़ जमा है. सुरक्षा बढ़ा दी गई है. बता दें कि बीते तीन जून को करुणानिधि ने अपना 94वां जन्मदिन मनाया था. 5 बार तमिलनाडू के मुख्यमंत्री रहे एम. करुणानिधि साउथ की राजनीति में इतने बड़े नाम हैं कि वे जब भी चुनाव लड़े उन्हें जीत हासिल हुई. आइए जानते हैं एम. करुणानिधि के जीवन के बारे में.
3 जून 1924 में जन्में करुणानिधि ने सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में पढ़ाई को छोड़कर राजनीतिक सफर पर चल निकले थे. राज्य में निचली जाति के लोगों को कोई कपड़ा पहनकर किसी मंदिर में नहीं जाने दिया जाता था. जिस बात करुणानिधि काफी क्रोधित थे. जिसके बाद वे द्रविड़ लोगों के ‘आर्यन ब्राह्मणवाद’ के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा बने. इसके साथ ही ‘पेरियार’ के ‘आत्मसम्मान आंदोलन भी जुड़े थे. निचली जाति के लोगों पर करुणानिधि की मजबूत पकड़ मानी जाती है. दक्षिण भारत में हिंदी विरोध को लेकर करुणानिधि ‘हिंदी-हटाओ आंदोलन’ के हिस्सा रहे.
साल 1937 में जब स्कूलों में हिंदी अनिवार्य की की गई तो इसका युवाओं ने जमकर विरोध किया जिसमें करुणानिधि भी शामिल थे. उसी दौरान करुणानिधि ने तमिल भाषा को प्रमुख हथियार बनाते हुए तमिल में नाटक, अखबार के लिए और फिल्मों के लिए कहानियां लिखने लगे. उनकी प्रतिभा को देखकर उन्हें अन्नादुराई और पेरियार ने उन्हें ‘कुदियारासु’ का संपादक बनाया. हालांकि पेरियार और अन्नादुराई के बीच हुए मतभेद के कारण करुणानिधि अन्नादुराई के पक्ष से जुड़ गए.
साल 1957 में करुणानिधि ने पहली बार चुनाव लड़ा और विधायक बने. जिसके बाद करुणानिधि ने जमकर मेहनत की और फल स्वरूप 1967 के चुनावों में करुणानिधि की पार्टी ने बहुमत हासिल किया और अन्नादुराई तमिलनाडु के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जो कांग्रेस पार्टी से नहीं थे. हालांकि 1969 में अन्नादुराई की अचानक मृत्यु के कारण इसी साल करणानिधि ने राज्य का मुख्यमंत्री पद संभाला. उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी.
इसी दौरान तमिलनाडू की सरकार में एक मोड़ ऐआया जब डीएमके में आपसी झगड़े हुए और पार्टी को दो भागों में विभाजित हो गई. जिसके बाद साल 1972 में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कणगम (एआईएडीएमके) की स्थापना हुई. जब करुणानिधि दूसरी सीएम बने तो आपातकाल के समय भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच आरोपों की जांच करने वाले आयोग की शिकायत पर इंदिरा गांधी ने करुणानिधि सरकार को बर्खास्त कर दिया. हालांकि इसके बाद करुणानिधि ने राज्य की तीसरी बार कमान संभाली. उस दौरान राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे.
जब करुणानिधि चौथी बार सीएम बने तो देश में नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. वहीं उन्होंने पांचवी बार तमिलनाडू की सत्ता संभाली तो कांग्रेस के मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे. गौरतलब है कि करुणानिधि की दलित लोगों में काफी अच्छी पकड़ बताई जाती है. उनका बेटा स्टालिन अब पार्टी की कमान संभाल रहा है. कभी करुणानिधि की शिष्य कहीं जाने वाली दिवंगत एआईडीएमके नेता और तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता से उनका राजनीतिक आमना-सामना रहा. एक बार जब जयललिता राज्य की सीएम थीं तो उन्होंने करुणानिधि को जबरन अरेस्ट भी करवाया था.
करुणानिधि ने जीवन में तीन शादियां की हैं. उनकी पहली पत्नी का नाम पद्मावती, दूसरी पत्नी का नाम दयालु अम्माल और तीसरी पत्नी का नाम रजति अम्माल है. करुणानिधि की पहली पत्नी पद्मावती का निधन हो चुका है. करुणानिधि के तीनों पत्नी से 4 बेटे और 2 बेटियां हैं. एमके मुथू, एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू करुणानिधि के 4 बेटे हैं. वहीं कनिमोझी और सेल्वी दयालु उनकी दो बेटियां हैं. कनिमोझी पूर्व दूरसंचार मंत्री एवं द्रमुक नेता ए. राजा की पत्नी हैं. इसके साथ ही वे 2जी स्पेक्ट्रम मामले में जेल भी जा चुकी हैं.
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