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हीरा बना एक हथियार, क्लाइमेट चेंज के लिए साबित होगा ब्रह्मास्त्र, सामने आई चौंकाने वाली रिसर्च

नई दिल्ली : जलवायु परिवर्तन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र भी लगातार इस पर चिंता जता रहा है। हालांकि, इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में एक अद्भुत खुलासा किया है। दावा किया गया है कि अगर हर साल धरती के ऊपरी वायुमंडल में लाखों टन हीरे का चूरा छिड़का जाए तो धरती का तापमान ठंडा किया जा सकता है।

यह दावा थोड़ा अविश्वसनीय लग सकता है, लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब ऐसा दावा किया गया हो। इससे पहले भी सल्फर, कैल्शियम, एल्युमिनियम और सिलिकॉन जैसे कई यौगिकों का इस्तेमाल करके यह काम करने का सुझाव दिया गया है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि वायुमंडल में हीरे के चूरे या कई अन्य यौगिकों का छिड़काव करके सूर्य से आने वाले विकिरण को वापस अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है, जिससे धरती पर तापमान कम हो सकता है।

सोलर रेडिएशन मैनेजमेंट क्या है ?

इस तकनीक को सोलर रेडिएशन मैनेजमेंट (एसआरएम) कहते हैं। इसमें सूर्य की किरणों को धरती तक पहुंचने से रोका जाता है। इस तरह के समाधान को आम तौर पर जियो-इंजीनियरिंग कहा जाता है, जिसमें वायुमंडलीय प्रक्रियाओं को नियंत्रित करके पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान किया जाता है।

हीरे का चूरा ही क्यों?

 

इस नए अध्ययन में पाया गया है कि हीरे का चूरा अन्य यौगिकों की तुलना में यह काम अधिक प्रभावी ढंग से कर सकता है। पहले जिन पर विचार किया गया था, उनमें सल्फर, कैल्शियम और अन्य यौगिक शामिल थे, हालांकि, इस अध्ययन में हीरे के चूर्ण को सबसे कारगर बताया गया है। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अब तक जो उपाय किए गए हैं, वे पर्याप्त साबित नहीं हुए हैं।

हीरे के चूर्ण की ताकत

नए अध्ययन में सात यौगिकों की तुलना की गई, जिसमें हीरे के चूर्ण को सबसे कारगर पाया गया। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हीरे के चूर्ण के इस्तेमाल से तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस तक की कमी लाई जा सकती है। हालांकि, इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए हर साल करीब पांच मिलियन टन हीरे के चूर्ण को वायुमंडल में छिड़कना होगा। हालांकि, इसे लागू करने में बड़ी तकनीकी और लागत संबंधी चुनौतियां सामने आ सकती हैं।

हीरे के चूर्ण के छिड़काव से प्राकृतिक प्रक्रियाओं में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप के कारण अवांछित और अप्रत्याशित परिणाम भी सामने आ सकते हैं। इससे वैश्विक और क्षेत्रीय मौसम प्रणाली और वर्षा वितरण प्रभावित हो सकता है। इसके साथ ही, इससे कई नैतिक चिंताएं भी जुड़ी हैं, क्योंकि प्राकृतिक सूर्य के प्रकाश में बदलाव से कृषि पर बड़ा असर पड़ सकता है और यह जीवन रूपों के लिए भी हानिकारक हो सकता है।

 

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Manisha Shukla

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