नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह शादी खत्म करने पर एकमुश्त समझौते के तौर पर अपनी पत्नी को 5 करोड़ रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता दे। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने बच्चे के भरण-पोषण और देखभाल की जिम्मेदारी पिता की होने पर जोर दिया।
कोर्ट ने कहा कि पिता को अपने वयस्क बेटे के भरण-पोषण और आर्थिक सुरक्षा के लिए 1 करोड़ रुपये का प्रावधान करना चाहिए। मामला प्रवीण कुमार जैन और उनकी पत्नी अंजू जैन के तलाक का है। प्रवीण कुमार जैन और अंजू जैन शादी के बाद 6 साल तक साथ रहे। इसके बाद करीब 20 साल से वे अलग रह रहे हैं। प्रवीण ने आरोप लगाया था कि अंजू अतिसंवेदनशील थी। वह उसके परिवार के साथ बेरुखी से पेश आती थी। वहीं अंजू ने आरोप लगाया था कि प्रवीण का व्यवहार उसके प्रति अच्छा नहीं था।
कोर्ट ने माना- शादी पूरी तरह टूट चुकी है पति-पत्नी लंबे समय से अलग रह रहे थे। उन्हें अपने वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने का कोई मौका नहीं मिला। इसे देखते हुए कोर्ट ने माना कि शादी ‘पूरी तरह टूट चुकी है।’ हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र या अंतरिम भरण-पोषण से संबंधित मुद्दे थे। न्यायालय ने पाया कि पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए। 5 करोड़ रुपये के स्थायी गुजारा भत्ते पर फैसला लेने से पहले न्यायालय ने रजनेश बनाम नेहा (2021) और किरण ज्योत मैनी बनाम अनीश प्रमोद पटेल (2024) के मामलों का हवाला दिया।
1. पति और पत्नी की सामाजिक और वित्तीय स्थिति।
2. पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित ज़रूरतें।
3. पति और पत्नी कितने योग्य हैं, उनकी रोज़गार स्थिति क्या है।
4. तलाक के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति की आय कितनी है। उसके पास कितनी संपत्ति है।
5. शादी के बाद पति के घर में पत्नी किस तरह का जीवन जी रही थी।
6. क्या नौकरी पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए छोड़ दी गई है।
7. अगर पत्नी काम नहीं करती है तो मुकदमे का उचित खर्च।
8. पति की आर्थिक क्षमता, उसकी आय, भरण-पोषण दायित्व और जिम्मेदारियां।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऊपर बताए गए कारक कोई सीधा फॉर्मूला नहीं बनाते। इसके बजाय, इन्हें स्थायी गुजारा भत्ता तय करते समय दिशा-निर्देश के तौर पर माना जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि स्थायी गुजारा भत्ता की रकम इस तरह से तय की जानी चाहिए कि इससे पति को कोई सजा न हो। साथ ही, पत्नी के लिए एक सभ्य जीवन स्तर भी सुनिश्चित किया जा सके।
प्रवीन और अंजू के तलाक मामले में कोर्ट ने इस तथ्य पर गौर किया कि पत्नी बेरोजगार थी। वह गृहिणी के तौर पर काम करती थी। वहीं, पति एक विदेशी बैंक में प्रबंधन पद पर कार्यरत था। उसे 10 से 12 लाख रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था। कोर्ट ने तलाक के लिए एकमुश्त समझौते के तहत स्थायी गुजारा भत्ता की रकम 5 करोड़ रुपये रखना उचित समझा।
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