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डेटा डिलीट या दोबारा लोड न करें, EVM वेरिफिकेशन के लिए SC ने दिया निर्देश

पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने EVM-VVPAT को लेकर ऐतिहासिक फैसला दिया था। इसमें चुनाव आयोग के लिए साफ दिशा-निर्देश थे कि क्या करना है, क्या नहीं करना है और अगर कहीं वोटिंग डेटा के सत्यापन की मांग की जाती है तो उसकी पुष्टि कैसे होगी।

SC
  • February 12, 2025 7:26 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 month ago

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर एक याचिका पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा, जिसमें चुनाव आयोग को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जली हुई मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट के सत्यापन की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई है।

सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने चुनाव आयोग से कहा, “डेटा डिलीट न करें। डेटा को दोबारा लोड न करें।” कोर्ट ने कहा, “हमने सिर्फ़ इतना निर्देश दिया था कि एक इंजीनियर आकर आवेदक-उम्मीदवारों की मौजूदगी में प्रमाणित करे कि माइक्रोचिप से छेड़छाड़ नहीं की गई है।”

ईवीएम को लेकर कोर्ट का क्या आदेश था

दरअसल, एडीआर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि ईवीएम के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के आदेश के अनुरूप नहीं है। पिछले साल अप्रैल में जारी अपने आदेश में कोर्ट ने दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों को यह विकल्प दिया था कि वे नतीजों की घोषणा के बाद प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5 फीसदी ईवीएम की जली हुई मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर की जांच और सत्यापन ईवीएम निर्माताओं के इंजीनियरों की टीम से कराएं।

सॉफ्टवेयर – हार्डवेयर की जांच करें

कोर्ट ने कहा था कि चुनाव परिणाम घोषित होने के सात दिन के भीतर ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर के सत्यापन के लिए शुल्क देकर अनुरोध किया जा सकता है। अगर ईवीएम में छेड़छाड़ पाई जाती है तो शुल्क वापस कर दिया जाएगा।

एडीआर की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ईवीएम की जांच के लिए सिर्फ मॉक पोल करता है। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि कोई ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की जांच करे और देखे कि उनमें किसी तरह की छेड़छाड़ की गई है या नहीं।”

ईवीएम को लेकर भारत में सवाल उठते रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग हर बार यह कहता आया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए ईवीएम बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

 

ईवीएम के विश्वनीयता पर उठे सवाल

जब राजनीतिक दलों ने ईवीएम पर सवाल उठाना शुरू किया तो चुनाव आयोग ने चुनावों में वीवीपैट की शुरुआत की। दरअसल, इसी वीवीपैट की मदद से मतदाता यह देख पाता है कि उसका वोट सही तरीके से पड़ा है या नहीं। जब मतदाता अपना वोट डालता है तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलकर बॉक्स में गिरती है। उस पर्ची पर मतदाता ने जिस पार्टी को वोट दिया है उसका चुनाव चिन्ह दर्ज होता है। विवाद की स्थिति में पर्ची निकालकर उसकी जांच भी की जाती है।

वीवीपैट मशीनों का पहली बार 2013 में नागालैंड विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल किया गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कुछ सीटों पर इस मशीन का इस्तेमाल किया गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इसका खूब इस्तेमाल हुआ।

 

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