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Delhi Violence: अंकित की मां हो या मुबारक की अम्मी, दंगों में जिन्होंने अपनों को खोया उनका दर्द कोई टीवी चैनल नहीं दिखा सकता

नई दिल्ली. दंगे खत्म हो गए, बस रह गई तो सीने की हूक जो रह रहकर उठती है अंकित शर्मा की मां और मुबारक हुसैन की अम्मी के सीने में… ऐसा ही दर्द उठता है उन लोगों के दिलों में जिनके अपने बेमौत मारे गए. आस-पड़ोस के लोग मातम मनाने आ रहे हैं, हिम्मत दिला रहे हैं. मीडिया वाले आ रहे हैं, सवाल पूछ रहे हैं. क्या हुआ? कैसे हुआ? जले हुए घर की तस्वीरें उतार रहे हैं. जला हुआ सोफा और टूटी हुई मेज दिखा रहे हैं.

तबाह हो चुकी किचन में पड़े जले हुए बर्तन दिखा रहे हैं, जलकर काली हो चुकी दीवार पर टंगी अधजली फोटो से आदमी को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं. इस दौरान घरवालों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं. घरवाले भी रोते-रोते घर के हर हिस्से में मीडियाकर्मियों को ले जाकर दिखा रहे हैं तबाही और बर्बादी का मंजर… देखिए सर क्या से क्या हो गया? हम बर्बाद हो गए. हमारा सबकुछ तबाह हो गया. हमारा बच्चा चला गया. मीडियाकर्मी फिर पूछते हैं कि इस तबाही का जिम्मेदार कौन है? कौन? इस कौन का कोई एक जवाब नहीं हो सकता. सबके अपने-अपने कौन हैं. लेकिन आपके एजेंडे में जो कौन फिट बैठेगा आप उसे ही हिंसा का जिम्मेदार मानेंगे.

उजड़ी हुई बेवा की तरह दिखाई देने वाली बस्ती में अब आपको सूट-बूट वाले एंकर नजर आ रहे हैं जो देर शाम टीवी पर अपने-अपने हिसाब से ग्राउंड रिपोर्ट दिखाएंगे. ये देखिए हमारी ग्राउंड रिपोर्ट जहां हमें फलां-फलां नजर आया. फिर आपको यही लोग बताएंगे कि हिंसा के लिए जिम्मेदार कौन है? एजेंडे के हिसाब से अपना-अपना सच आपको दिखाया जाएगा और आप उसी एजेंडे वाले सच को मानकर बैठ जाएंगे कि टीवी पर तो यही दिखाया था, यही सच होगा. बस यहीं आप गलती कर बैठते हैं, आप भूल जाते हैं कि चैनल के लिए सच का मतलब वही है जो उसके एजेंडे में फिट बैठता है.

आपको सिर्फ वो तस्वीरें दिखाई जा रही हैं जो फलां चैनल के एजेंडे को जस्टिफाई करता है. हर तस्वीर का दूसरा पहलू होता है, वो पहलू देखे बिना किसी निष्कर्ष तक ना पहुचें. आपको दिखाये जाने वाले सच की सच्चाई वास्तविक्ता से कोसों दूर हो सकती है. आंख बंद कर किसी टीवी चैनल की रिपोर्ट पर पूरी तरह भरोसा ना करें. किसी चैनल की रिपोर्ट देखकर आपके पड़ोस में रह रहे सलीम से नफरत ना करें ना ही सलीम भूल जाए कि उनका पड़ोसी समीर और उसका परिवार उनका अपना परिवार है जो हमेशा उनके सुख-दुख में साथ रहा है. जिनके घर वो अपने घर की चाभियां भी बेझिझक छोड़कर चला जाता है कि मेरी अम्मी आए तो उन्हें ये चाभी दे दीजिएगा.

दंगों के दौरान लगी आग अब ठंडी हो चुकी है और किसी तरह जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश हो रही है. अफजल का घर जलकर तबाह हो चुका है, पड़ोस में रहने वाले रामनिवास ने उन्हें अपने घर में जगह दी है. रामनिवास अफजल और उनके परिवार की हरसंभव मदद कर रहे हैं. दूसरी तरफ वीरपाल की राशन की दुकान जलकर खाक हो गई है, हमलावरों ने उनकी दुकान का शटर तोड़कर सबकुछ लूट लिया और फिर दुकान में आग लगा दी है.

वीरपाल टूटे हुए शटर के नीचे से दुकान में जाते हैं और फिर जले हुए सामान की राख को हाथ में लेकर दहाड़ मारकर रो रहे हैं. दुकान के बगल में अनवर का परिवार रहता है. अनवर के पिता रहीम चाचा रामनिवास के पास पानी का गिलास लेकर पहुंचते हैं. रामनिवास के लिए अपने घर से कुर्सी मंगाते हैं और वीरपाल को गले लगाकर कहते हैं बेटा, चिंता मत करो, अल्लाह बड़ा करम वाला है…सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा. रामनिवास भी रहीम चाचा को गले लगाकर बच्चों की तरह रोता है कि चाचा मेरा तो सब लुट गया.

नोट- आर्टिल में लिखे गए सभी विचार लेखक अतुल गुप्ता के हैं. इन विचारों का इनखबर अथवा आईटीवी नेटवर्क से कोई लेना-देना नहीं है. 

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Aanchal Pandey

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