नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में शराब की बिक्री पर छूट न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है. चर्चा है शराब पर भारी छूट मिलने की, लोगों के मन में भी सवाल उठ रहे हैं कि इतनी छूट देने के बाद भी बेचने वाले कैसे लाभ में हैं.
यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि जहां कुछ समय पहले तक शराब की बिक्री पर 50 प्रतिशत तक की छूट दी जा रही थी, वहीं कई शराब विक्रेता भी कारोबार में नुकसान का हवाला देकर दिल्ली सरकार से राहत की मांग कर रहे थे. विशेषज्ञों की मानें तो अब वह दिल्ली में जितनी ज्यादा बिक्री कर सकेंगे, उन्हें उतना ही ज्यादा फायदा होगा. ऐसे में ज्यादा छूट देने की होड़ मची हुई है, जिसका फायदा दिल्ली सरकार और लोगों को मिल रहा है.
दिल्ली में शराब पर 25 प्रतिशत तक की छूट दी जा रही है, लेकिन पिछले फरवरी तक यह छूट 50 प्रतिशत तक थी. इस भारी छूट पर जब सवाल उठे तो दिल्ली सरकार ने इस पर रोक लगा दी, लेकिन कुछ समय बाद सरकार ने 25 फीसदी तक की छूट के साथ शराब की बिक्री की इजाजत दे दी. तब से दिल्ली ही नहीं, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुरुग्राम समेत एनसीआर के अन्य शहरों से भी लोग इस शराब छूट का लाभ लेने आ रहे हैं.
दरअसल, नई शराब नीति के तहत दिल्ली सरकार ने साल 2021-22 में राजधानी दिल्ली में शराब की बिक्री पूरी तरह से निजी हाथों में दे दी. इसके लिए उसने शराब की बिक्री से पहले ही शराब की खुदरा कंपनियों से लाइसेंस फीस के तौर पर करीब 300 करोड़ रुपये लिए.
सरकार ने सभी ब्रांड की शराब के लिए अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) तय किया, जो लगभग पिछले साल की कीमत के बराबर था. इसके साथ ही विक्रेताओं को अनुमति दी गई थी कि वे एमआरपी से कम कीमत पर शराब बेच सकते हैं. यहीं से शराब छूट देने का खेल शुरू हुआ. शराब नीति से पहले यदि एक्स-ब्रांड की शराब 150 रुपये में आयात की जाती थी, तो उस पर 150 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी और 200 प्रतिशत आयातक मार्जिन लगता था. इसके बाद, यह 85 प्रतिशत उत्पाद शुल्क और 25 प्रतिशत वैट के अधीन था, इसके बाद 12 प्रतिशत थोक व्यापारी मार्जिन था. इस तरह 150 रुपये की यह बोतल सभी टैक्स चुकाने के बाद रिटेलर को करीब 1600 रुपये मिल जाती थी, जिस पर वह अधिकतम 100 रुपये के मुनाफे के साथ इसे 1700 रुपये में बेच देता था.
नई शराब नीति के लागू होने से 150 रुपये की इस बोतल पर 150 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी और 200 प्रतिशत आयातक मार्जिन पहले की तरह लागू किया जा रहा है, लेकिन 25 प्रतिशत वैट को खत्म करने के साथ ही 85 प्रतिशत उत्पाद शुल्क घटाकर केवल एक प्रतिशत कर दिया गया है. इसके साथ ही थोक व्यापारी का 12 प्रतिशत मार्जिन भी समाप्त कर दिया गया है, क्योंकि थोक विक्रेता का काम खुदरा कंपनियां कर रही हैं.
दरअसल, रिटेलर कंपनियां करीब 300 करोड़ लाइसेंस फीस पहले ही दे चुकी हैं, इसलिए वे ज्यादा से ज्यादा शराब बेचकर ज्यादा मुनाफा कमाना चाहती हैं. यही कारण है कि वह फरवरी तक ग्राहकों को अधिक बिक्री के लिए 50 प्रतिशत तक की छूट दे पाती थी और अब 25 प्रतिशत तक की छूट दे रही है.
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन एल्कोहलिक बेवरेज कंपनीज के महासचिव विनोद गिरी का कहना है कि शराब विक्रेता ने ठेका लेते समय सरकार को एकमुश्त बड़ी रकम दी है. आरक्षित मूल्य से 70-80 करोड़ रुपये अधिक की बोली पर निविदाएं छोड़ी गई हैं. अब वह जितनी अधिक बिक्री कर सकेगा, उसे उतना ही अधिक लाभ होगा, इसलिए अधिक छूट देने की होड़ मची हुई है.
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