भारत विविधता का देश है यहां चंद कदमों पर बोली बदल जाती है. इसी विविधता का बेमिसाल उदाहरण है बिहार का सीतामढ़ी गांव जहां हर जाति का अपना ही अलग मंदिर है. विशेष बात तो यह है कि इस मंदिरों में ब्राह्मण पुजारी नहीं बल्कि उसी जाति के लोग पूजा करते हैं जिस जाति का मंदिर होता है.
नवादाः बिहार के नवादा जिले के मेसकौर प्रखंड का सीतामढ़ी गांव यूं तो सीता माता की निर्वासन और लव,कुश की जन्मस्थली के रूप में जाना जाता है. लेकिन एक वजह और भी है जिसकी वजह से यह पूरे भारत में अनोखा गांव है.संभवत: यह देश का पहला गांव होगा, जहां अलग-अलग जातियों के एक दर्जन से अधिक मंदिर एक ही स्थान पर मौजूद हैं. जातिगत मंदिरों के साथ एक अच्छा पहलू यह जुड़ा है कि यहां उसी जाति के पुजारी होते हैं.
दलित जाति से आये दशरथ मांझी की जाति का भी मंदिर है जहां लिखा है, दो बातें हैं मोटी-मोटी हमें चाहिए इज्जत,रोटी और ठगकर लूटकर खाने वाले को हमने धिक्कारा है, मेहनत की रोटी जो खाए, भाई वही हमारा है. गांव के दलितों का कहना है कि गांव में विख्यात सीता माता के मंदिर में पंडितों का बोलबाला है, उन्होंने मंदिर को लूट का अड्डा बना दिया है.
गांव वालों ने बताया कि काफी समय पहले उनके बुजुर्गों को सीता माता के मंदिर में जाने से रोका गया था उनसे बोला गया था कि वह वहां पूजा नहीं कर सकते. उस मंदिर पर पंडितों, भूमिहारों, लालाओं और राजपूतों का हक है. जिसके चलते दलित समाज के लोगों ने अपनी-अपनी जाति के मंदिर का निर्माण कराया. यह गांव सामाजिक सद्भाव की मिसाल है। अलग-अलग जातियों के मंदिर होते हुए भी इस गांव के लोग सामाजिक सद्भाव की परम्परा के वाहक बने हैं। आजतक जात-पात को लेकर इस गांव में किसी का किसी से विवाद नहीं हुआ.
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