वाराणसी में पार्षद चुनाव नहीं है आसान, जानें पीछे का खूनी इतिहास

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में नगर निगम चुनाव का बिगुल बज गया है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों हलचल शुरू हो गई है। इसी के साथ पार्षद बनने के इच्छुक उम्मीदवारों की दौड़ भी शुरू हो गई है। कई नेता अपनी-अपनी पार्टियों के पार्षद बनने और उम्मीदवारी पेश करने की इच्छा जताते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी […]

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वाराणसी में पार्षद चुनाव नहीं है आसान, जानें पीछे का खूनी इतिहास

Amisha Singh

  • April 15, 2023 7:20 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में नगर निगम चुनाव का बिगुल बज गया है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों हलचल शुरू हो गई है। इसी के साथ पार्षद बनने के इच्छुक उम्मीदवारों की दौड़ भी शुरू हो गई है। कई नेता अपनी-अपनी पार्टियों के पार्षद बनने और उम्मीदवारी पेश करने की इच्छा जताते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के गढ़ वाराणसी में पार्षद बनना इतना आसान नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट का इतिहास इस तरह रहा है कि चुनावी वर्चस्व के लिए यहां कई पार्षदों की हत्या भी हो चुकी है।

 

➨ वाराणसी में पार्षद का इतिहास

खबरों के मुताबिक, पार्षद कमल अंसारी की साल 2003 में डालमंडी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, हत्या के कुछ दिनों बाद, हत्या के लिए वांछित हसीन और आलम को एक एनकाउंटर में पुलिस ने मार डाला था। फिर साल 2003 में मुकीमगंज के पार्षद रहे अनिल यादव की सिगरा थाना क्षेत्र के फातमान रोड में दिनदहाड़े बदमाशों ने फायरिंग कर हत्या कर दी। इसके साथ ही रामपुरा जिले के बॉडी बिल्डर विजय वर्मा की भी रामकुटी व्यायामशाला के पास गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया था।

 

 

➨ काशी में नगर निकाय चुनाव के लिए खूनी संघर्ष

शहर निकाय में भी वर्चस्व की खूनी लड़ाई वर्ष 2015 में भी देखी गई थी। रामपुरा के जिला पार्षद रहे शिव सेठ की लोकप्रियता को देखते हुए उनकी हत्या कर दी गई थी। दूसरी ओर, साल 2005 में भेलूपुर के सरायनंदन के सदस्य मंगल प्रजापति की भी हत्या कर दी गई थी। इस हत्या में उसके करीबी दोस्त बबलू लंबू का नाम सामने निकलकर आया था।

 

हालांकि उसके बाद बबलू लंबू भी नहीं बच पाया था। सुदामापुर के जिला पार्षद बबलू लंबू की भी 2007 में हत्या कर दी गई थी। पूर्व में रहे दबंग अनिल सिंह के करीबी रहे सुरेश गुप्ता की जैतपुरा इलाके में मुन्ना बजरंगी के शूटरों ने हत्या कर दी थी। वे गोली मारकर फरार हो गए। ऐसा भी कहा जाता है कि बदमाश सुरेश गुप्ता के भाई पार्षद दीना गुप्ता को जान से मारने आए थे और जल्दबाज़ी में सुरेश गुप्ता को गोली मार फरार हो गए थे।

 

➨ कई लोगों के हुए क़त्ल

इसके अलावा सूची में पान दरीबा जिले के नगरसेवक बंशी यादव का नाम भी है, जिनकी 2004 में कुख्यात लुटेरों अन्नू त्रिपाठी और बाबू यादव ने जिला जेल के गेट पर हत्या कर दी थी। बाद में बंशी यादव के शिष्य संतोष गुप्ता किट्टू ने बदला लेने के लिए मई 2005 में सेंट्रल जेल में अपने गुरु के हत्यारे अन्नू त्रिपाठी की हत्या कर दी।

 

किट्टू ने जवाबी कार्रवाई की लेकिन पुलिस के रडार पर आ गया। इसके 5 साल बाद किट्टू पर डेढ़ लाख का इनाम तय किया गया था। इन्हीं सब के बीच 4 जून 2010 को चौकाघाट इलाके में किट्टू पुलिस के शिकंजे में आ गया और इसके बाद एनकाउंटर में मारा गया।

 

 

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