नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस की अगुवाई में लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया है. प्रस्ताव पर 64 वर्तमान और 7 पूर्व सांसदों के हस्ताक्षर थे. दिलचस्प बात यह है कि दीपक मिश्रा जिस राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं वह परिवार देश आजाद होने के पहले से कांग्रेस पार्टी के लिए जनसेवा करता आया हैं.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के दादा गोदाबारिश मिश्रा विख्यात स्वतंत्रता सेनानी थे. मॉडर्न ओडिशा (तत्कालीन उड़ीसा) के निर्माण के लिए जिन पंचसखा (5 लोगों का समूह, जिन्हें आदर्श ओडिशा बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी) को चुना गया, उनमें गोदाबारिश मिश्रा भी एक थे. 1928 में उन्होंने कांग्रेस के आदेश पर ओडिशा से इसकी शुरूआत की थी. उसी साल उन्हें ओडिशा के डेली अखबार ‘द समाज’ का संपादक बनाया गया. इसके बाद 1941 में गोदाबारिश मिश्रा ओडिशा के पहले शिक्षा मंत्री बनाए गए. आजादी से पूर्व काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की बैठक में यह फैसला लिया गया था.
दीपक मिश्रा ने बनपुर स्थित जिस गोदाबारिश विद्यापीठ से पढ़ाई की है वह उनके दादाजी के नाम पर ही रखा गया. गोदाबारिश मिश्रा के तीन पुत्र थे. बड़े बेटे का नाम लोकनाथ मिश्रा था. लोकनाथ स्वतंत्र पार्टी के सदस्य थे. इंडियन नेशनल कांग्रेस पर पंडित जवाहर लाल नेहरू के बढ़ते प्रभाव के बाद सी. राजगोपालाचारी ने स्वतंत्र पार्टी का निर्माण किया था. बाद में लोकनाथ मिश्रा जनता पार्टी में शामिल हो गए. लोकनाथ मिश्रा 1960 और 1978 में राज्यसभा सांसद रहे. 1991 से 1996 तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. लोकनाथ 91 से लेकर 97 तक अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, असम के राज्यपाल भी रहे.
गोदाबारिश मिश्रा के दूसरे बेटे का नाम रघुनाथ मिश्रा था. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा रघुनाथ मिश्रा के ही बेटे हैं. रघुनाथ भी कांग्रेस पार्टी में ही थे. दीपक मिश्रा के पिता ओडिशा विधानसभा में बनपुर क्षेत्र से विधायक भी चुने गए. गोदाबारिश के सबसे छोटे बेटे का नाम रंगनाथ मिश्रा था. रंगनाथ 1983 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे. 1969 में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ओडिशा हाई कोर्ट के जज बनाए गए. 1981 में उन्हें ओडिशा हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया. 1990 में 14 माह के लिए भारत के 21वें मुख्य न्यायाधीश बने थे.
इसे इत्तेफाक ही कहा जाएगा कि जब दीपक मिश्रा चीफ जस्टिस पद की शपथ लेने जा रहे थे तो उन्हें भी 14 माह का कार्यकाल मिला. दीपक मिश्रा इसी साल 2 अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं. 1993 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी. मिश्रा परिवार की कांग्रेस से नजदीकियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसी साल जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. रंगनाथ मिश्रा के वकील बेटे पिनाकी मिश्रा बीजेडी से राज्यसभा सांसद हैं.
गौरतलब है कि दीपक मिश्रा 1985 में जिला न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिस करते थे. 1996 में उन्हें ओडिशा हाई कोर्ट के अतिरिक्त जज का प्रभार सौंपा गया. उस समय केंद्र और राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. जेबी पटनायक ओडिशा के मुख्यमंत्री थे. अगले साल उन्हें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का जज बनाया गया. उस समय भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे. साल 2009 में उन्हें पटना हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया. उस समय केंद्र में यूपीए सरकार थी तो राज्य में एनडीए सरकार में शामिल जेडीयू के नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे.
साल 2010 में उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया. इस समय केंद्र और राज्य दोनों ही जगह कांग्रेस पार्टी की सरकार थी. अक्टूबर 2011 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया. उस समय मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त किए जाने से पहले दीपक मिश्रा कई अहम मामलों में फैसले सुना चुके हैं. 93 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाए जाने वाली याचिका की सुनवाई दीपक मिश्रा की बेंच ने ही की थी. 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के दोषियों को भी दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने ही फांसी की सजा सुनाई.
सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने वाले न्यायाधीश दीपक मिश्रा ही हैं. पिछले साल 11 अगस्त को तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने अयोध्या में रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई के लिए न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच को चुना था. कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, जोकि इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड की पैरवी कर रहे हैं, उन्होंने इस मामले की सुनवाई अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव तक रोकने की मांग की थी. कुल मिलाकर कहा जाए तो मिश्रा परिवार हमेशा से गांधी परिवार के नजदीक रहा है. ऐसे में कांग्रेस द्वारा ही दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने पर हैरानी होना जरूर लाजमी है.
CJI के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज, जानिए अबतक का पूरा घटनाक्रम
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