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Chhawla rape case : क्यों सुप्रीम कोर्ट ने छावला रेप केस के आरोपियों को किया रिहा ?

देहरादून. एक बार फिर मानवता को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है. दरअसल, उत्तराखंड की सर्वोच्च अदालत ने छावला रेप केस में तकरीबन सालों से सज़ा काट रहे आरोपियों को रिहा कर दिया है. अब हर कोई छावला की रेप पीड़िता रौशनी (सांकेतिक नाम) के लिए इंसाफ मांग रहा है. निर्भया काण्ड के बाद ये दूसरी घटना थी जिसने पूरे देश को झंकझोर कर रख दिया है. आज हम आपको उस खौफनाक मंज़र के बारे में बताते हैं-

9 फरवरी का वो दिन..

नौ फरवरी 2012 ही वो दिन था, जब एक खौफनाक मंज़र ने पूरे देश को हिला दिया था. ये वही साल था जब निर्भया के साथ दरिंदगी की गई थी, इसी दिन 19 साल की रौशनी अपने दोस्तों के साथ काम से वापस लौट रही थी, तब उसे कहाँ पता था कि आगे उसके साथ क्या होने वाला है. थोड़ी देर में वो बस से उतरी और पैदल ही घर जाने लगी, तभी एक लाल रंग की इंडिका कार ने उसका रास्ता रोक लिया, इस कार में से तीन लोग निकले और उन्होंने रौशनी को अगवा कर लिया.

दिल्ली पुलिस ने नहीं की मदद

इधर रौशनी के घरवालों को उसकी चिंता सता रही थी, पीड़िता के पिता एक मामूली गार्ड की नौकरी करते थे. उन्होंने बेटी के लापता होने की सूचना पुलिस को दी लेकिन पुलिस की दलील सुनकर वो हैरान रह गए क्योंकि पुलिस ने कहा कि बदमाशों को ढूंढने के लिए उनके पास गाड़ी नहीं है.

अगवा कर हरियाणा ले गए आरोपी

एक ओर दिल्ली पुलिस ने पीड़ित परिवार की कोई मदद नहीं की तो वहीं दूसरी ओर आरोपी पीड़िता को अगवा कर हरियाणा ले गए. कार में ही उन्होंने पीड़िता के साथ बदसलूकी शुरू कर दी, रास्ते में उन्होंने एक ठेके से दारु खरीदी और शराब पीते हुए रौशनी के साथ बदसलूकी करने लगे.
इस जगह पहले तो आरोपियों ने उसके कपड़े फाड़े और फिर एक-एक कर उसका बलात्कार किया, उन्होंने न सिर्फ उसके साथ बलात्कार बल्कि उसे कई जगहों से काटा और जलाया भी. पीड़िता अपने जान की गुहार लगाती रही लेकिन आरोपियों ने उसकी एक न सुनी. उनपर हवस का ऐसा भूत सवार था कि वो कुछ भी सुनने-समझने को तैयार नहीं थे. पीड़िता ने आरोपियों से पीने के लिए पानी माँगा, लेकिन तब तक उनके दिमाग में उसे मारने और अपनी करतूत छुपाने की तरकीब बन गई.

आँखों को फोड़कर डाला एसिड

रौशनी के साथ जिस तरह की बदसलूकी हुई उससे वो दर्द से कराह रही थी, इसके बाद आरोपियों ने उसे जिस घड़े से पानी पिलाया था उसी घड़े से उसपर वार कर दिया. उसका जिस्म खून से तर-बतर था. इसके बाद दरिंदों ने गाड़ी के साइलेंसर से दूसरे हथियारों को गर्म कर उसके शरीर को हर जगह से जला दिया, इतना ही नहीं आरोपियों ने पीड़िता के प्राइवेट पार्ट को भी जला दिया. फिर आरोपियों ने बीयर की बोतल तोड़कर उसके शरीर को काट दिया और फिर उसकी आँखें फोड़कर उसमें एसिड डाल दिया.
इस मामले आरोपियों ने खुद कबूल किया था कि उन्होंने तसल्ली करने के लिए पीड़िता पर कई वार किए और फिर जब उन्होंने सुनिश्चित कर लिया कि उसकी मौत हो गई तो वो उसे वहीं छोड़कर भाग गए. दरिंदों ने पीड़िता के शव को हरियाणा के रेवाड़ी में छुपाया था, और यहीं से पुलिस को उसका शव भी मिला. जब पुलिस ने लाश का पोस्टमॉर्टम करवाया तो पता चला कि उसके साथ किस तरह की हैवानियत की गई है. किस तरह उसके जिस्म को जलाया गया, बीयर की बोतल से उसका शरीर काट दिया गया और फिर उसकी आँखें फोड़कर उसमें तेज़ाब डाल दी.

ऐसे पकड़े गए आरोपी

पुलिस ने जब मामले की जांच शुरू की तब पता चला कि सभी आरोपी हरियाणा के रहने वाले थे, आरोपियों की पहचान रवि, राहुल और विनोद के तौर पर की गई, ये ड्राइवरी का काम करते थे. इसके बाद पुलिस ने आरोपियों की लोकेशन ट्रेस कर उन्हें धर दबोचा.

पुलिस ने की थी फांसी की सज़ा की मांग

दिल्ली पुलिस ने भी इस मामले को ‘रेयरस्ट ऑफ रेयर’ केस बताते हुए दोषियों के लिए फांसी की मांग की थी वहीं दूसरी ओर बचावपक्ष ने दोषियों की उम्र और सामाजिक हालात देखते हुए उन्हें उम्रकैद सुनाने की अपील की थी. दोषियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (2), 302, 363 और 201 के तहत आरोप तय किए गए थे और इस मामले में उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई थी. इसके बाद जब यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा तो वहां भी ये सज़ा बरकरार रखी गई. ‘

इस मामले में दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें दोषियों के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उनके मुअक्किलों की उम्र, फैमिली बैकग्राउंड और क्रिमिनल रिकॉर्ड को भी सज़ा देने के दौरान ध्यान में रखना चाहिए. वकील ने तर्क दिया था कि उनका एक मुअक्किल विनोद दिमाग से कमजोर भी है और साथ ही पीड़ित को लगी चोटें भी गंभीर नहीं है. इस आधार पर वकील ने मुव्वकिलों की सज़ा कम करने की अपील की थी.
इस दलील के विरोध में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भारती ने कहा था- पीड़ित को 16 गंभीर चोटें आई थी और लड़की की मौत के बाद उस पर 10 वार किए गए थे, ऐसे ही अपराध मां-बाप को मजबूर करते हैं कि वो अपनी लड़कियों के पंख काट दें इसलिए दोषियों को कड़ी सज़ा होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने किस तर्क पर आरोपियों को किया रिहा

कहा जा रहा है कि छावला रेप के दोषियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत न होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया है.

 

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Aanchal Pandey

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