Political Violence In West Bengal: चुनाव के दौरान हिंसा होना पश्चिम बंगाल में आम है। 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल से हर फेज में किसी न किसी तरह की हिंसा की खबर आती रही। बंगाल बीजेपी नेता दिलीप घोष का कहना है कि देश में हर जगह चुनाव हुए लेकिन हमलों की ख़बरें सिर्फ बंगाल से क्यों आई? बंगाल में चुनाव से पहले और बाद में हिंसा को देखें तो दोनों एक दूसरे के पूरक नजर आते हैं।
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा की स्थिति बदतर है। एनसीआरबी ने 2018 में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसके अनुसार देशभर में पूरे साल हुई 54 राजनीतिक हत्याओं में 12 पश्चिम बंगाल से जुड़े हुए थे। इस साल गृह मंत्रालय ने प्रदेश की सरकार को एडवाजरी भेजी थी, जिसके अनुसार बंगाल में राजनीतिक हिंसा में 96 लोग मारे गए। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2016 के बीच बंगाल में हर साल कम से कम 20 राजनीतिक हत्याएं हुई है। सबसे ज्यादा हत्या 2009 में हुई जब 50 लोगों को मार दिया गया। इसी साल माकपा ने आरोप लगाया कि 2 मार्च से 21 जुलाई के बीच TMC ने उनके 62 काडरों की हत्या कर दी।
पंचायत चुनावों में राज्य में हिंसा का आंकड़ा और बढ़ जाता है। 2023 पंचायत चुनाव में 8 जुलाई को हुए वोटिंग में राज्य के अलग-अलग इलाकों में 15 लोगों की हिंसा में मौत हुई थी। कई जगहों पर बैलट पेपर फाड़ डाई गए तो कहीं उसे उठाकर पानी में डाल दिया गया तो कहीं पर बैलेट बॉक्स में आग ही लगा दी। मरने वालों में सबसे ज्यादा TMC के 8 कार्यकर्ता थे। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में 47 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं।
ऐसा नहीं है कि बंगाल में चुनाव के दौरान हिंसा ममता दीदी के राज्य में ही हो रहा है। 1980 और 1990 के दशक में जब बंगाल में टीएमसी और बीजेपी का अस्तित्व भी नहीं था, तब वाममोर्चा और कांग्रेस के बीच में हिंसा होती थी। 1989 में राज्य के तत्कालीन सीएम ज्योति बसु ने सदन में एक आंकड़ा पेश किया था, जिसमें उन्होंने बताया था कि 1988-89 के समयावधि में 86 कार्यकर्ताओं की हत्या हो गई थी। इसमें से 34 सी.पी.एम. और 19 कांग्रेसी कार्यकर्ता थे। अब भारतीय जनता पार्टी ममता सरकार पर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर हमला करने, उनके घर में घुसकर तोड़फोड़ करने करने का आरोप लगा रही है।
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