लखनऊ: सपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है. जिसमें अखिलेश यादव ने साफ़ कर दिया है कि समाजवादी पार्टी अब भी पिछड़ों-दलितों और मुसलमानों के ही समीकरण पर राजनीति करेगी. हालांकि अब मुसलमान और यादवों के अलावा पार्टी में ओबीसी वर्ग का भी बोलबाला देखने को मिलेगा. ओबीसी वर्ग का बोलबाला इस […]
लखनऊ: सपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है. जिसमें अखिलेश यादव ने साफ़ कर दिया है कि समाजवादी पार्टी अब भी पिछड़ों-दलितों और मुसलमानों के ही समीकरण पर राजनीति करेगी. हालांकि अब मुसलमान और यादवों के अलावा पार्टी में ओबीसी वर्ग का भी बोलबाला देखने को मिलेगा.
इस बीच ये बात भी साफ़ हो गई है कि ब्राह्मण और ठाकुरों के लिए समाजवादी पार्टी की राजनीति में वह जगह नहीं बची है, जो पहले कभी हुआ करती थी. दरअसल पार्टी ने रविवार को संगठन पदों के नामों का ऐलान किया है. इनमें कुल 62 नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है. इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष, प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय सचिवों का नाम भी शामिल हैं.
इनमें से 14 राष्ट्रीय महासचिवों की घोषणा की गई है. हैरानी की बात ये है कि इसमें से एक भी ब्राह्मण या ठाकुर चेहरा नहीं है.वहीं आजम खान के सिवाय किसी अन्य मुस्लिम चेहरे को बतौर राष्ट्रीय महासचिव जगह नहीं मिली है. जबकि इस बार अखिलेश यादव ने OBC को भरपूर जगह दी. इसमें रवि प्रकाश वर्मा, स्वामी प्रसाद मौर्य, विश्वंभर प्रसाद निषाद, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर हरेंद्र मलिक नीरज चौधरी का नाम शामिल है.
राष्ट्रीय संगठन में ओबीसी की सभी बड़ी जातियों को बड़े पद मिले हैं. मौर्य, राजभर निषाद और कुर्मी और जाट नेताओं को भी राष्ट्रीय संगठन बनाया गया है. इसके अलावा पासी, जाटव जैसी दलित जातियों को भी जगह मिली है. इस बार बाहर से आए नेताओं का भी पार्टी ने खूब साथ दिया है. अब चाहे ये नेता BSP से आए हों या BJP से संगठन में उन्हें भी भरपूर जगह दी गई है.
समाजवादी पार्टी के संगठन में हुए बदलाव से यह बात तो साफ़ है कि ठाकुर और ब्राह्मणों को पार्टी पहले जैसी प्रमुखता नहीं दे रही है. जबकि अपने एमवाई समीकरण के साथ ओबीसी और दलितों को लेकर समाजवादी पार्टी नए समीकरण बना रही है. यह भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. माना जा रहा है कि 2024 लोकसभा में उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए इस रणनीति को तैयार किया गया है. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो ब्राह्मण और ठाकुरों का लगभग अधिकांश वोट भाजपा को ही जाता है. इस पर अधिक मेहनत करने से सपा वो फायदा नहीं कमा पाएगी जो उसे शायद मिलता . इसलिए अब पार्टी ने अपना फोकस मुस्लिम, यादव, ओबीसी और दलित वर्ग पर कर दिया है.
ज्ञात हो यूपी से 80 लोकसभा सीट आती हैं. राजनीति में एक कहावत है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है. भाजपा को 2019 में यूपी से 64 सीटें मिली थीं. वहीं दो सीट पर उसके सहयोगी अपना दल (एस) का कब्जा है. बाकी की सीटों की बात करें तो इसमें से तीन सीटें सपा, एक पर कांग्रेस और 10 सीटें बसपा के पास हैं. दूसरी ओर बता दें, यूपी में सवर्ण जातियां 18 फीसदी हैं, जिसमें 10 फीसदी ब्राह्मण हैं. वहीं पिछड़े वर्ग की संख्या 40 प्रतिशत है.
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