मंगलवार का दिन जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भूचाल लेकर आया. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. 2014 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद बना ये गठबंधन पहले ही दिन से किसी को हजम नहीं हो रहा था. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में करीब 9 महीने का वक्त बचा है और सूत्रों की मानें तो आम चुनाव में कश्मीर से आर्टिकल 370 खत्म करना बीजेपी के गले की फांस बन सकता था.
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया. 2014 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद बना ये गठबंधन पहले ही दिन से किसी को हजम नहीं हो रहा था. ‘राष्ट्रवादी’ बीजेपी का ‘अलगाववादियों की हमदर्द’ पीडीपी के साथ गठबंधन बेमेल था, फिर भी सत्ता के लिए दोनों ने तालमेल किया. तीन साल तक सत्ता का सुख बीजेपी ने भोगा, अब जनता का कोप भोगने से बचना था, इसलिए और कोई चारा नहीं था. इसलिए गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया गया.
2019 में आर्टिकल 370 की मजबूरी !
बीजेपी कह रही है कि जम्मू-कश्मीर में हालात खराब होते चले गए, इसलिए गठबंधन तोड़ने का फैसला करना पड़ा. ये सिर्फ कहने की बात है. जम्मू-कश्मीर में हालात उस वक्त भी कहां सुधरे थे, जब बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन किया था. असली वजह ये है कि 2019 के चुनाव में अब ज्यादा से ज्यादा नौ महीने का वक्त बचा है. चुनाव के लिए घोषणा पत्र भी बनाना होता है और परंपरागत तौर पर बीजेपी के घोषणा पत्र में कश्मीर से आर्टिकल 370 खत्म करने का मुद्दा होता ही है. अगर बीजेपी का पीडीपी से गठबंधन बना रहता, तो फिर आर्टिकल 370 बीजेपी के गले अटक जाता. इस मुद्दे को उगलते तो देश की जनता पीछे पड़ जाती और नहीं उगलते तो पीडीपी जीना हराम कर देती.
बीजेपी का दांव, पीडीपी चारों खाने चित्त !
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का पूरा जनाधार सिर्फ जम्मू और लद्दाख रीजन में है. पीडीपी से गठबंधन की सरकार चला कर बीजेपी ने जम्मू और लद्दाख में अपने काडर और कार्यकर्ताओं को सत्ता की संजीवनी देने का मकसद पूरा कर लिया. महबूबा की पार्टी कश्मीर घाटी की पार्टी मानी जाती है. वहां के खराब हालात का ठीकरा अब पूरी तरह महबूबा के सिर फूटना तय है. सरकार से अलग होकर अब बीजेपी सीना फुलाकर जम्मू और लद्दाख की जनता के बीच जा सकती है.
बीजेपी के दोनों हाथों में लड्डू !
सरकार से दूर होकर जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने सत्ता की बागडोर पूरी तरह अपने हाथों में थाम लिया है. जम्मू-कश्मीर में गवर्नर रूल होगा, गवर्नर सीधे केंद्र सरकार को रिपोर्ट करेंगे. केंद्र में बीजेपी की सरकार है. मतलब ये कि बीजेपी के दोनों हाथों में लड्डू हैं. कश्मीर के हालात खराब होने की तोहमत से भी बच गए और अब कश्मीर को पूरी तरह अपने हिसाब से चलाने की आजादी भी है. वैसे भी सेना आतंकियों का सफाया करने के लिए मचल रही है. अगर कश्मीर में हालात थोड़े भी सुधरे तो इसका क्रेडिट बीजेपी को ही मिलेगा.
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