लखनऊ। बीजेपी ने कैसरगंज से सांसद बृजभूषण का टिकट तो काट दिया पर इलाके में उनके दबदबे से बाहर नहीं निकल पाई। आखिरकार पार्टी को उनके पहलवान बेटे करण भूषण सिंह को ही कैसरगंज से प्रत्याशी बनाना पड़ा। बीजेपी के बृजभूषण शरण सिंह के इस छाया से न निकल पाने के पीछे पूरी वजह भी है। कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी उनके परिवार को कैसरगंज से टिकट नहीं देती तो वह आसपास की कई सीटों पर समीकरण बिगाड़ देते। वहीं बीजेपी ने रायबरेली से भी 2019 में सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ चुके दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है।
गोंडा जिले की कैसरगंज सीट से सांसद बृजभूषण सिंह छह बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। गोंडा और आसपास के कई जिलों में उनका दबदबा है। वह चार से पांच लोकसभा सीटों पर सीधा असर रखते हैं। उनका असर इतना है कि कई जिलों में जिला पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव तक में उनकी मर्जी चलती है। उनके पास खुद का हेलीकाप्टर है, जिससे पिछले विधानसभा चुनाव में कई जिलों में प्रचार करने पहुंच गए थे। मूल रूप से पहलवान बृजभूषण सिंह छात्र राजनीति और फिर गन्ना संघों की राजनीति करते हुए सियासत में आए। वह 1989 में में बीजेपी में आए थे अयोध्या आंदोलन में सक्रिय हो 1991 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने थे। इसके बाद बृज भूषण सिंह ने 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की। 2009 में जब उनका भाजपा में कुछ विवाद हुआ तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। इसके बाद वे 2009 में सपा के टिकट पर कैसरगंज से चुनाव जीते थे।
पहले चरण के ही चुनाव से यह कहा जा रहा था कि क्षत्रिय बीजेपी से नाराज हैं। पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक क्षत्रियों ने अलग-अलग अपनी बैठकें भी कीं। यह नाराजगी गाजिायाबाद से वीके सिंह का टिकट कटने के बाद शुरू हुई। इसके बाद से लगातार बीजेपी क्षत्रियों के बीच संवाद बढ़ा रही है। अगर इस बार बूजभूषण या उनके परिवार को कोई टिकट नहीं दिया जाता तो इसका असर अवध की सीटों पर भी पड़ता और क्षत्रियों में गलत संदेश जाता। इस वजह से बीजेपी ने रायबरेली और कैसरगंज दोनों जगह क्षत्रिय उम्मीदवार उतारे।
सहकारी ग्राम्य विकास बैंक नवाबगंज के अध्यक्ष और यूपी कुश्ती संघ के प्रदेश अध्यक्ष करण भूषण पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। आस्ट्रेलिया से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले करण डबल ट्रैप शूटिंग के नेशनल खिलाड़ी रह चुके हैं। वह भारतीय कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
यूपी सरकार में उद्यान राज्य मंत्री दिनेश प्रताप सिंह 2019 ने सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। इस बार भी बीजेपी ने उन्हीं पर भरोसा किया है। 2014 में सोनिया गांधी 3.52 लाख वोटों से जीती थी। 2019 में जब कांग्रेस से बीजेपी में आए दिनेश प्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाया गया तो सोनिया गांधी का मार्जिन कम हो गया। सोनिया गांधी सिर्फ 1.67 लाख वोटों से ही जीत सकीं। कांग्रेस का वोट प्रतिशत आठ फीसदी घट गया। वहीं बीजेपी का वोट प्रतिशत 17 फीसदी बढ़ गया। 2019 में सोनिया को 5.37 लाख वोट मिले और बीजेपी को 3.68 लाख वोट मिले। यह वोट प्रतिशत और बढ़ने की उम्मीद है। बीजेपी रायबरेली में इसलिए भी उम्मीद देख रही है क्योंकि यहां बीजेपी बीते तीन साल से बूथवार एक-एक वोट जोड़ने पर काम कर रही है। इससे पहले रायबरेली में 1996 और 1998 में अशोक सिंह बीजपी के टिकट पर जीत चुके हैं। 1998 और 1996 में कांग्रेस की जमानत तक जब्त हो गई थी। यह कांग्रेस का सबसे खराब दौर था।
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