पटना: बिहार के भागलपुर से ऐसा मामला सामने आया है जिसपर यकीन कर पाना शायद मुश्किल होगा। बता दें, भागलपुर में एक बार फिर स्वास्थ्य महकमें की पोल खुल गई है। दरअसल, यहां रेलवे अस्पताल से एक लावारिस लाश को एंबुलेंस की जगह ठेलागाड़ी में पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है। हद तो तब हो […]
पटना: बिहार के भागलपुर से ऐसा मामला सामने आया है जिसपर यकीन कर पाना शायद मुश्किल होगा। बता दें, भागलपुर में एक बार फिर स्वास्थ्य महकमें की पोल खुल गई है। दरअसल, यहां रेलवे अस्पताल से एक लावारिस लाश को एंबुलेंस की जगह ठेलागाड़ी में पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है।
हद तो तब हो गई जब जिस ठेला गाड़ी से शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जा रहा था उस ठेले के पहियों में न तो हवा थी और न ही ब्रेक। इतना ही नहीं ठेला चला रहे मजदूरों के मुंह से शराब की बास भी आती है। कुल मिलाकर यह कहना सही होगा कि तस्वीरों में दिख रही लाश कोई लावारिस लाश नहीं बल्कि भागलपुर स्वास्थ्य विभाग की ‘लाश’ है।
एक ओर जहां भारतीय रेलवे चिकित्सा विभाग सुविधा देने के तमाम वादे करता नजर आ रहा है, वहीं दूसरी ओर भागलपुर की सड़कों पर रेलवे के स्वास्थ्य महकमे की पोल खोलती तस्वीर साफ़ नज़र आ रही है। आज भी ऐसी ही एक तस्वीर भागलपुर की सड़कों पर देखने को मिली जहां दो युवक एक लावारिस शव को ठेले पर लादकर पोस्टमार्टम के लिए ले जा रहे थे, जिस ठेले में शव रखा था उसमें न ही ब्रेक थे और न ही उसके पहियों में हवा। साथ ही ठेला चालक और उसके साथी के मुंह से शराब की भी बू आ रही थी।
लावारिस शव के साथ न तो रेलवे स्वास्थ्य कर्मी थे और न ही रेलवे पुलिस प्रशासन के लोग। यूपी का रहने वाला कृष्ण कुमार भागलपुर में रहा हैं और ठेले का काम करते है। जब भी रेलवे पर कोई लावारिस शव मिलता है तो वह उसे अपने ठेले में लादकर करके दो पैसे के लिए पोस्टमार्टम हाउस ले जाते हैं। ठेला चालक और उनके साथी का कहना है कि एंबुलेंस की कमी के कारण वे रेलवे के स्वास्थ्य विभाग से पैसे कुछ पैसे कमाते हैं। लाशों को पोस्टमार्टम हाउस ले जाना पड़ता है और बदले में उन्हें कुछ पैसे मजदूरी के रूप में मिलते हैं।
…. भले ही सरकार गांव-गांव में विकास यात्रा निकाल कर ग्रामीण विकास के खोखले दावे कर रही है, लेकिन धरातल पर हकीकत ग्रामीण विकास के दावों की पोल खोल रही है। ऐसे में न तो सरकार और न ही प्रशासन को इस बात की सुध है। चुनावी दौड़ की तैयारी कर रहे जनप्रतिनिधि अगर उन लोगों पर भी ध्यान दें जिनके लिए वे सत्ता में हैं तो शायद इन तस्वीरों में जो दिख रहा है वह बदल जाएं।