बनारस. देश के कई बुद्धिजीवियों को आराम मिलेगा ! क्योंकि बनारस में हिंदुत्व जीत गया. बीएचयू में जो मुसलमान असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान छात्रों की आंखों का कांटा बन गया था उसने खुद ही अपना इस्तीफा सौंप दिया. खैर फिरोज इस्तीफा न भी देते तो क्या करते, जब छात्र ही पढ़ने को राजी नहीं तो गुरु का क्या काम. ऐसा नहीं है कि प्रोफेसर फिरोज की नौकरी छिन गई, नहीं बल्कि वे अब यूनिवर्सिटी के आर्ट्स विभाग में कार्यरत होंगे. लेकिन बात सिर्फ उनकी नौकरी की नहीं है.
प्रोफेसर फिरोज ने कभी नहीं सोचा होगा कि मुसलमान होना उनके लिए भारत में इतना मुश्किल होगा. फिरोज जब मेधावी छात्र रहे तो उन्होंने हमेशा सुंदर भारत की कल्पना की होगी. लेकिन हकीकत कितनी भयावह होगी इसकी कल्पना वो कभी कर ही नहीं सकते थे.
किसी का धर्म उसकी शिक्षा पर कितना भारी इसकी तुलना सभी बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने हिसाब से की लेकिन इंसानियत की बात किसी ने नहीं की. यूनिवर्सिटी में धरने पर बैठे छात्र नेता चक्रपाणी मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल करने से बचते तो रहे लेकिन हिंदू संस्कृति का हवाला देकर मांग पर टिके रहे.
नियुक्ति के हम खिलाफ नहीं लेकिन इस विभाग में ही क्यों ?
प्रदर्शन कर रहे छात्र चक्रपाणी का कहना है कि यूनिवर्सिटी में संस्कृत के 12 विभाग हैं जिनमें 11 विभागों में अगर प्रोफेसर फिरोज खान की नियुक्ति होती है तो हमें कोई विरोध नहीं. लेकिन इस संकाय में उनकी नियुक्ति जायज नहीं है. इस संकाय में वेदों को सिर्फ पढ़ाया नहीं जाता बल्कि वैदिक विधि विधानों का पालन भी किया जाता है. इसी वजह से सनातन वर्णाश्रम परंपरा से बाहरी व्यक्ति इस विभाग में न पढ़ा सकता है न प्रवेश कर सकता है.
तो छात्रों के विरोध और फिरोज के इस्तीफे के बीच हिंदुत्व जीत गया !
भारत में कोई प्रधानमंत्री जब शपथ लेता है तो वह हमेशा कहता कि मैं संघ के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेता हूं. संघ मतलब छोटे-बड़े अलग-अलग समुदाय, भाषा, संस्कृति वाले लोगों का समूह. भारत की अखंडता और एकता ही पहचान है. लेकिन अब हवा थोड़ी बदलने लगी है और देश में हिंदुत्व की बात होने लगी है.
हिंदुत्व की बात होना बिल्कुल भी गलत नहीं है लेकिन असमाजिक तत्वों ने इस पवित्र शब्द का मतलब अपने लोभ-लालच के अनुसार निकाल लिया. अब उनका काम है उनकी अपनी बनाई विचारधारा के साथ हिंदुत्व शब्द को लोगों तक पहुंचाना. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ही ऐसा ही हुआ. कुछ छात्र विरोध में प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए निकले लेकिन मामला ये हिंदुत्व पर आ गया.
प्रोफेसर फिरोज खान ने हिंदुत्व शब्द की गरिमा को शायद उन लोगों से ज्यादा समझा और अपना इस्तीफा दे दिया. आज गांधी जिंदा होते तो किसी को ऐसा न करने देते लेकिन आज शायद राष्ट्रपिता का ज्ञान धर्मों के बीच फीका पड़ गया. जो सपना गांधी ने नए भारत का देखा था वो देश आज भी नहीं बन पाया. हे राम !
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