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Dussehra 2018: भीम आर्मी की अजीबोगरीब मांग- रावण के पुतला दहन पर लगे रोक, जलाने वाले के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज हो केस

Dussehra 2018: भीम आर्मी ने महाराष्ट्र पुलिस को पत्र लिखकर दशहरा वाले दिन रावण के पुतला दहन पर रोक लगाने की मांग की है. महाराष्ट्र में कई आदिवासी संगठनों ने भी भीम आर्मी की इस मांग का समर्थन किया है.

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Bhim Army seeks ban on burning Ravan’s effigies during Dussehra
  • October 17, 2018 6:22 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

मुंबईः Dussehra 2018: दलित अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन भीम आर्मी ने महाराष्ट्र सरकार से एक बड़ी ही चौंकाने वाली मांग कर डाली है. संगठन ने हर साल दशहरे के मौके पर जलाए जाने वाले रावण के पुतले के दहन पर रोक लगाने की मांग की है. संगठन ने मंगलवार को महाराष्ट्र पुलिस को चिट्ठी लिखकर यह मांग की है. संगठन का कहना है कि इस साल जिसने भी रावण का पुतला फूंका उसके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज कराया जाएगा. भीम आर्मी के इस कदम से रामलीला कमेटी से जुड़े आयोजक सकते में हैं. हालांकि महाराष्ट्र पुलिस की ओर से अभी इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की गई है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भीम आर्मी का कहना है कि कई आदिवासी समुदाय रावण को आज भी अपना आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं. संगठन ने महाराष्ट्र पुलिस को भेजे गए पत्र में लिखा है कि रावण मानवतावादी संस्कृति का प्रतीक था. वह एक राजा था जो न्याय और समानता में विश्वास रखता था. इतिहास में छेड़छाड़ कर हजारों वर्षों से रावण को खलनायक के तौर पर पेश किया जाता रहा है. भीम आर्मी का कहना है कि अगर रावण के पुतला दहन पर रोक नहीं लगाई जाती है तो इससे कानून व्यवस्था पर खतरा पैदा हो सकता है. भीम आर्मी के सुर में सुर मिलाते हुए महाराष्ट्र के कई आदिवासी संगठनों ने भी रावण के पुतला दहन का विरोध किया है.

बताते चलें कि राजस्थान के जोधपुर में रावण का एक मंदिर भी बनाया गया है. जब पूरे देश में दशहरा पर्व मनाया जाता है, रावण का पुतला जलाया जाता है तो जोधपुर में खुद को रावण का वंशज मानने वाले लोक रावण की मौत का शोक मनाते हैं. दवे समुदाय के लोग श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वज रावण के लिए तर्पण भी करते हैं. श्रीमाली दवे (गोधा) पंडित कमलेश दवे ने बताया कि रावण हमारे पूर्वज हैं. रावण के सभी वंशज लक्ष्मी विवाह के समय दक्षिण भारत के भिनमाल से उत्तर भारत की ओर आ गए थे. इस समुदाय के सबसे ज्यादा लोग गुजरात और राजस्थान में बसे हैं. पंडित कमलेश ने कहा कि दशहरे वाले दिन वह लोग घर पर ही रहते हैं और रावण की मौत का शोक मनाते हैं.

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