बागपत: राजधानी दिल्ली और हरियाणा की सीमा से सटे बागपत की धरती पर राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है। बागपत शहर को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि के रूप में जाना जाता है। इस लोकसभा का उदय 1967 में हुआ था। इससे पहले यह क्षेत्र सरधना लोकसभा में आता था। अभी इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभा (बागपत, बड़ौत, छपरौली, मोदीनगर व सिवालखास) सीटें आती हैं।
राजनीति की बात करें तो इस सीट पर ज्यादातर चौधरी परिवार का कब्जा रहा है। लेकिन पिछले दो बार से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन में रही रालोद इस बार बीजेपी के साथ हो गई है। बीजेपी ने यह सीट रालोद को दी है। वहीं सपा ने जहां पहले जाट कार्ड खेला था लेकिन नामांकन खत्म होने के एक दिन पहले ही उम्मीदवार को बदल दिया। अब सपा ने यहां से ब्राह्मण उम्मीदवार पर भरोसा जताया है। इसके अलावा बसपा भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतार चुकी है। ऐसे में आइए इस बागपत की सीट का आंकलन करते हैं और जानते है इस सीट का जातीय समीकरण और इस सीट के राजनीतिक इतिहास के बारे में।
2019 लोकसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और रालोद के बीच रहा था। सपा और बसपा के साथ गठबंधन की वजह से रालोद के खाते में यह सीट गई। रालोद की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते और अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी को मैदान में उतारा गया। लेकिन बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने जयंत चौधरी को 23,502 वोटों के अंतर से हरा दिया। जयंत चौधरी के हिस्से में 502,287 वोट आए थे। वहीं सत्यपाल सिंह को 525,789 वोट मिले थे।
2019 का लोकसभा चुनाव चौधरी परिवार के लिए एक झटका था, क्योंकि अजित सिंह को मुजफ्फनगर से हार का सामना करना पड़ा था तो जयंत चौधरी को यहां से हार मिली थी।
1967 में जब यह सीट अस्तित्व में आई, तब इस सीट पर जनसंघ की जीत हुई जो बाद में जाकर बीजेपी में तब्दील हो जाती है। जनसंघ की तरफ से रघुवीर सिंह ने यह सीट जीती। फिर 1971 के चुनाव में कांग्रेस के राम चंद्र विजयी हुए थे। लेकिन इसके बाद चौधरी चरण सिंह की एंट्री होती है और वह लगातार 1977, 1980 और 1984 का चुनाव जीतते है। 1984 में वह ऐसे वक्त में इस सीट पर जीत हासिल करते हैं जब देशभर में कांग्रेस को सहानुभूति की लहर की वजह से खूब समर्थन मिल रहा था। 1989 और 1991 में चरण सिंह के बेटे अजित सिंह जनता दल के टिकट पर विजयी हुए।
1996 के चुनाव में अजित सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते भी। लेकिन उन्होंने बाद में पार्टी और सांसदी से इस्तीफा दे दिया। फिर 1997 के उपचुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता। लेकिन 1998 के चुनाव में बाजेपी के टिकट पर सोमपाल शास्त्री ने अजीत सिंह को हराया। इसके बाद अजीत सिंह ने राष्ट्रीय लोक दल को लॉन्च किया और 1999, 2004 और 2009 में चुनाव जीता। हालांकि 2014 में मोदी लहर के समय यह सीट बीजेपी के खाते में आ गई। तब IPS से राजनीति में आए सत्यपाल सिंह ने चुनाव जीता और वह 2019 में भी विजयी हुए।
2011 की जनगणना के मुताबिक बागपत जिले की कुल जनसंख्या 22 लाख से ज्यादा की है। इसमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या साढ़े तीन लाख के करीब की है। जबकि जाटों की संख्या चार लाख तक की है। दलित वोटर भी डेढ़ लाख की संख्या में मौजूद है। इसके अलावा गुर्जर, राजपूत, ब्राह्मण, त्यागी समाज भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं।
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