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World Puppetry Day: पुतुल के संग, 5 शहरों में आयोजित होगा पुतुल उत्सव

World Puppetry Day नई दिल्ली, कठपुतली यानी लकड़ी या काठ का बना ऐसा खिलौना जो सालों से लोगों का मनोरंजन करते आया है, विद्वानों की मानें तो भारतीय नाट्यकला का जन्म भी कठपुतली के इस खेल से ही हुआ है. इस प्राचीन कला को लोगों के बीच और ज्यादा लोकप्रीय बनाने के लिए विश्व कठपुतली […]

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World Puppetry Day
  • March 23, 2022 10:41 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

World Puppetry Day

नई दिल्ली, कठपुतली यानी लकड़ी या काठ का बना ऐसा खिलौना जो सालों से लोगों का मनोरंजन करते आया है, विद्वानों की मानें तो भारतीय नाट्यकला का जन्म भी कठपुतली के इस खेल से ही हुआ है. इस प्राचीन कला को लोगों के बीच और ज्यादा लोकप्रीय बनाने के लिए विश्व कठपुतली दिवस (21 मार्च) के मौके (World Puppetry Day) पर संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुतुल उत्सव का आयोजन किया गया. कठपुतली उत्सव को देश के 5 बड़े शहरों में आयोजित किया गया है, इस बार कठपुतली दिवस की खास बात यह है कि इस बार पुतुल उत्सव आजादी के अमृत महोत्सव के रंग में रंगा होगा, और यही वजह है कि इसकी थीम भी आजादी के रंग, पुतल के संग रखी गई है.

इन 5 शहरों में मनेगा पुतली उत्सव

कठपुतली नृत्य को लोकनाट्य की शैली में रखा गया है. ये एक अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है. इस खेल में लकड़ी, धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों द्वारा जीवन के अनुभवों की मंच प्रस्तुति की जाती है. ऐसी महान कला को बचाए रखने के लिए अब पांच बड़े शहरों हैदराबाद (तेलंगाना), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), अंगुल (ओडिशा), अगरतला (त्रिपुरा) और दिल्ली में पुतली उत्सव का आयोजन शुरू हो चुका है. जहां हैदराबाद और वाराणसी में यह उत्सव (21 से 23 मार्च) तीन दिनों तक मनाया जाने वाला है. वहीं अंगुल में यह उत्सव 21 और 22 मार्च को आयोजित किया जाएगा. दिल्ली और अगरतला में भी ये उत्सव एक दिवसीय यानी 21 मार्च को करवाया जाएगा. इस उत्सव में देश भर से पुतली संस्थाएं भी भाग लेने वाली हैं.

कठपुतली कला का रोचक है इतिहास

कठपुतली के इतिहास के बारे में बात करें तो कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाकवि पाणिनी के अष्टाध्याई ग्रंथ में पुतला नाटक का उल्लेख मिलता है. साथ ही सिंहासन बत्तीसी जैसी नामचीन कथा में भी 32 पुतलियों का उल्लेख है. पुतली कला की प्राचीनता के संबंध में तमिल ग्रंथ ‘शिल्पादिकारम्’ से भी जानकारी मिलती है.

 

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