पटना: सावित्री बाई फुले जयंती समारोह में 7 जनवरी को शिक्षा मंत्री डा.चंद्रशेखर डेहरी पहुंच थे, इस दौरान उन्होंने कहा कि मंदिर का रास्ता मानसिक गुलामी का रास्ता है और स्कूल का रास्ता प्रकाश का रास्ता है. देश में सावित्री बाई फुले ने महिलाओं एवं अनुसूचित जाति के बीच शिक्षा का अलख जगाया था. उसी की वजह से हमारे समाज में अनुसूचित जाति को जगह मिली है।
शिक्षा मंत्री ने अधिकारियों से कहा कि अब एकलव्य का बेटा अंगूठा दान नहीं देगा, जवाब देगा. संगठित रहो, शिक्षित बनो, संघर्ष करो. उन्होंने कहा कि विधायक फतेह बहादुर सिंह के जीभ की कीमत दस करोड़ लग गई. हम नौकरी वितरण कर रहे हैं. बिहार में एक साल में 5 लाख से ज्याद नौकरी दी गई है. उधर गांव-गांव अक्षत पहुंचाया जा रहा है क्या आपके बेटे को चपरासी से कलक्टर बना देगा. निश्चित रूप से आपके बेटे को कापी, कलम और स्कूल ही सिपाही से एसपी बनाएगा. शिक्षा मंत्री ने कहा कि अक्षत देने वालों से बचिए और बाबा आंबेडकर की धारणाओं पर चलिए।
वहीं राजस्व मंत्री आलोक मेहता ने कहा कि सावित्री बाई ने 19वीं सदी में सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह और छुआछूत जैसी कुरीतियों के विरुद्ध पति के साथ मिलकर काम किया. उन्होंने खुदकुशी करने जा रही विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई का अपने घर में प्रसव कराया फिर उनके बच्चे का नाम यशवंत रख दत्तक पुत्र के रूप में अपनाया और पढ़ा लिखाकर डॉक्टर बनाया. वहीं ज्योतिबा फुले की मृत्यु होने के बाद सावित्री बाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लिया. सावित्री बाई फुले की ही देन है कि हमारे समाज में आज महिलाओं का सम्मान मिल रहा है।
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