चंद्रबाबू नायडू की चाल..कहीं 2019 चुनाव से पहले BJP के लिए खतरे का संकेत तो नहीं?

क्या नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यह सवाल इसलिए क्योंकि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिए जाने से नाराज मोदी सरकार में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के दोनों मंत्रियों अशोक गजपति राजू (नागरिक उड्डयन मंत्री) और वाईएस चौधरी (विज्ञान और तकनीकी, राज्यमंत्री) ने गुरुवार शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घर जाकर खुद उनको अपना इस्तीफा सौंप दिया. इससे चंद मिनटों पहले पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को फोन पर करीब 10 मिनट तक मनाने की कोशिश की लेकिन पीएम की सभी कोशिशें बेकार रहीं. नायडू नहीं माने और पीएम को फोन पर ही सरकार से खुद को अलग करने का अपना फरमान सुना दिया.

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चंद्रबाबू नायडू की चाल..कहीं 2019 चुनाव से पहले BJP के लिए खतरे का संकेत तो नहीं?

Aanchal Pandey

  • March 8, 2018 7:18 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्लीः क्या नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर अड़ी है लेकिन केंद्र सरकार है कि उनकी मांग किसी भी सूरत में मानने को तैयार नहीं है. मोदी सरकार का कहना है कि वह राज्य को स्पेशल पैकेज तो दे सकते हैं लेकिन विशेष राज्य का दर्जा नहीं. लिहाजा टीडीपी ने सरकार से खुद को अलग करने का फैसला कर लिया. गुरुवार सुबह मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के कैबिनेट में शामिल बीजेपी के दो मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. शाम होते-होते खबर आई कि टीडीपी सांसद और केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू और राज्यमंत्री (विज्ञान और तकनीकी) वाईएस चौधरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना इस्तीफा सौंपने के लिए उनके निवास 7, लोक कल्याण मार्ग पहुंचे हैं. दोनों ने करीब आधे घंटे तक पीएम मोदी से बात की और इसी दौरान उन्होंने पीएम को अपना इस्तीफा सौंप दिया.

मगर इससे चंद मिनटों पहले पीएम मोदी ने सीएम नायडू को मनाने के लिए खुद फोन पर करीब 10 मिनट तक बात की लेकिन मगर कहानी में ट्विस्ट तब आ गया जब नायडू नहीं माने. नायडू ने फोन पर ही पीएम को उनके मंत्रियों के इस्तीफा देने और सरकार से अलग होने का कारण बताया. ऐसे भी कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों पार्टियों के बीच एक बार फिर से साथ बने रहने पर सहमति बन सकती है लेकिन नायडू सरकार से अलग होने का पक्का मन बना चुके थे. गुरुवार को विधानसभा में बोलते हुए नायडू ने कहा कि केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर के राज्यों का हाथ थामा है लेकिन आंध्र प्रदेश के साथ ऐसा सलूक क्यों किया जा रहा है? उनके राज्य के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है?

सदन में नायडू ने कहा, ‘मैंने 29 बार दिल्ली जाकर पीएम नरेंद्र मोदी से आंध्र प्रदेश का हाथ थामने के लिए मुलाकात की गुहार लगाई लेकिन उनकी तरफ से कोई पहल नहीं हुई. राज्य की नई राजधानी (अमरावती) को विकसित करने के लिए फंड, पोलावरम प्रोजेक्ट और विशाखापत्तनम के लिए हुए वादे अब तक पूरे नहीं हुए हैं.’ केंद्र सरकार से अलग होने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए नायडू ने सदन में कहा, ‘वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को जो कहा वह अच्छा नहीं है. आप पूर्वोत्तर राज्यों का हाथ मजबूती से थामे हुए हैं लेकिन आंध्र प्रदेश को दरकिनार कर रहे हैं. आप उन्हें औद्योगिक क्षेत्र में प्रोत्साहन दे रहे हैं लेकिन आंध्र प्रदेश के साथ ऐसा कुछ भी नहीं कर रहें. यह भेदभाव क्यों?’ हालांकि नायडू ने यह भी साफ किया कि वह सरकार से अलग हो रहे हैं, एनडीए से नहीं.

मगर सियासत ऐसी शतरंज है कि यहां कब कौन किसे मात देने की साजिश रच रहा होता है, कहा नहीं जा सकता. माना जा रहा है कि अगर एनडीए में शामिल दल इसी तरह बीजेपी का साथ छोड़ते रहे तो 2019 चुनाव में बीजेपी के लिए संकट पैदा हो सकता है. सूत्रों की मानें तो एनडीए में शामिल शिवसेना किसी भी समय सरकार से अलग होने का फैसला कर सकती है. शिवसेना नेता सरकार के इस रवैये को अति आत्मविश्वास करार दे रहे हैं. उनका मानना है कि अगर सरकार का यही हाल रहा तो 2019 आम चुनाव में बीजेपी का वही हश्र होगा जो 2004 के जनरल इलेक्शन में अटल सरकार का हुआ था. तत्कालीन सरकार के ‘शाइनिंग इंडिया’ के नारे की हकीकत चुनावी नतीजों ने बुरी तरह रौंद दी थी. वह चुनाव भी पार्टी के अति आत्म विश्वास की कहानी बयां करता है. बहरहाल मोदी सरकार को इसे ‘दूध का जला वाला’ इशारा समझते हुए 2004 की घटना से सीख लेनी चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि अंत में दूध का जला छाछ को बस फूंक मारता ही रह जाए.

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