नई दिल्ली. वही हुआ, जो पहले से तय था. आम आदमी पार्टी ने कुमार विश्वास और आशुतोष का राज्यसभा में जाने का सपना चकनाचूर कर दिया. आहत आशुतोष तो चुपचाप इस कड़वे फैसले को बर्दाश्त कर गए और अपनी प्यारी बिल्लो के साथ सेल्फी लेकर मन बहलाने लगे लेकिन कुमार विश्वास ने अपनी चुप्पी शहीदाना अंदाज़ में तोड़ी. मीडिया के सामने आकर कवि कुमार विश्वास बोले- ‘मैंने जो-जो बोला, उसका पुरस्कार मुझे दंड स्वरूप दिया गया. अरविंद ने 22 लोगों की बैठक में मुस्कुराते हुए कहा था कि सर जी! आपको मारेंगे पर शहीद नहीं होने देंगे. मैं उनको बधाई देता हूं. मैं अपनी शहादत स्वीकार करता हूं.’
कुमार विश्वास का ये बयान बड़ा दिलचस्प है. आम लोगों को समझने में वक्त लगेगा कि कुमार विश्वास ने केजरीवाल के खिलाफ जंग कब छेड़ी थी, जो आज वो खुद को शहीदों की कतार में खड़ा देख रहे हैं? राज्यसभा के लिए दरकिनार किए जाने की अपनी पीड़ा बयां करते हुए कुमार विश्वास ने अंत में जो दोहा सुनाया, वो भी उनके शहीद होने वाले बयान से उलट था. उन्होंने कहा- ‘सबको लड़ने ही पड़े, अपने-अपने युद्ध, चाहे राजा राम हों, चाहे गौतम बुद्ध.’ इसका मतलब क्या है? अगर कुमार विश्वास शहीद हो ही चुके हैं तो फिर शहीद होने के बाद वो अपना कौन सा युद्ध लड़ने वाले हैं?
पहले आपको कुमार विश्वास के शहीद होने वाला वाकया समझाते हैं. कुमार विश्वास ने खुद बताया कि उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक, जेएनयू कांड, पंजाब में उग्रवादियों के साथ सहानुभूति रखने जैसे मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के रुख का विरोध किया था. बकौल कुमार विश्वास, केजरीवाल ने इसी के बाद कहा था कि वो कुमार विश्वास को मारेंगे लेकिन शहीद नहीं बनने देंगे. माना कि ऐसा हुआ होगा लेकिन ये तो जंग का एलान करने जैसी बात हुई. जंग की बुनियाद क्या थी, इसे समझने के लिए थोड़ा और पीछे झांकना होगा.
आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास के बीच महत्वाकांक्षाओं की जंग 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान शुरू हुई. पार्टी आलाकमान (केजरीवाल) की मर्जी और मंजूरी के बिना ही कुमार विश्वास अमेठी पहुंच गए थे. उन्होंने अपनी मर्जी से खुद को राहुल गांधी के खिलाफ आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया था. ये सीधे-सीधे केजरीवाल के नेतृत्व को चुनौती थी. तब हालात ऐसे नहीं थे कि केजरीवाल कोई बड़ा फैसला कर पाते. उन्होंने कुमार विश्वास की मनमानी बर्दाश्त की.
कुमार विश्वास और केजरीवाल कैंप के बीच खींचातानी उसी के बाद शुरू हुई. कुमार विश्वास पार्टी में अपनी दखल बढ़ाना चाहते थे और केजरीवाल खेमा उनके पर कतर कर रखना चाहता था. कुमार के चरित्र पर लांछन लगाने से लेकर उन्हें बीजेपी का एजेंट घोषित करके, उनके खिलाफ खुली नारेबाज़ी करने तक का घटनाक्रम इस बात का गवाह है. कुमार विश्वास के खिलाफ पार्टी के अंदर चल रहा अभियान केजरीवाल की मौन सहमति के बिना संभव नहीं था. ये हो ही नहीं सकता था कि दिलीप पांडे बिना केजरीवाल की मर्जी के कुमार विश्वास के खिलाफ नारेबाज़ी-पोस्टरबाज़ी कर बैठे.
सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल कैंप को कुमार विश्वास की पार्टी में सक्रियता और लोकप्रियता खटकने लगी थी. उन्हें अंदेशा था कि कुमार विश्वास पार्टी का संयोजक बनने का मंसूबा रखते हैं. राजनीति में एक सिद्धांत लागू होता है कि शक की बुनियाद पर राई का पहाड़ बना दिया जाए, ताकि शक के केंद्र में खड़े व्यक्ति को स्थिति साफ करने के लिए मजबूर होना पड़े. मई 2017 में जब कपिल मिश्रा बाग़ी हुए तो अमानतुल्लाह खान के जरिए यही आरोप लगवाया गया कि कुमार विश्वास पार्टी का संयोजक बनने के लिए साज़िश रच रहे हैं. कुमार विश्वास को इस पर सफाई देनी पड़ी कि उनके मन में किसी पद की लालसा नहीं है.
उस दौरान ये लगने लगा था कि कुमार विश्वास अलग राह चुन सकते हैं. चूंकि तब सहानुभूति कुमार विश्वास के साथ थी, इसलिए केजरीवाल ने उन्हें मनाया और राजस्थान का प्रभारी बनाकर एक तीर से दो निशाने साधे. पहला ये कि कुमार विश्वास के समर्थकों को भरोसा हो जाए कि पार्टी में उनका रुतबा बरकरार है. दूसरा ये कि कुमार विश्वास को राजस्थान तक सीमित रखने का आधार बन जाए. इसी आधार पर कुमार विश्वास को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में वक्ताओं की लिस्ट से बाहर रखा गया.
कुमार विश्वास को राज्यसभा ना भेजना केजरीवाल के लिए मजबूरी और ज़रूरी दोनों था. कुमार विश्वास को राज्यसभा भेजने का सीधा मतलब यही होता कि आम आदमी पार्टी में उनका खेमा मजबूत हो जाता. राज्यसभा सांसद की हैसियत से कुमार विश्वास कम से कम 6 साल तक पार्टी कार्यकर्ताओं और वॉलंटियर्स के लिए ‘काम के नेता’ बन जाते. बेहतरीन वक्ता तो कुमार विश्वास पहले से हैं, संसद में अपनी इसी कुशलता का फायदा उठाकर वो अपना कद बड़ा कर लेते. आने वाले दिनों में केजरीवाल के लिए कुमार विश्वास सबसे बड़ी चुनौती बन जाते. केजरीवाल और उनके समर्थक भला इस बात को कैसे बर्दाश्त कर सकते थे? कोई भी शख्स, जिसने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर राजनीति में जगह बनाई हो, उसी जगह पर किसी और को काबिज होता कैसे देख सकता था?
अब केजरीवाल ने कुमार विश्वास को शह दे दी है. इंतज़ार कुमार विश्वास की जवाबी चाल का है. अगर उनसे चूक हुई तो मात, वरना आम आदमी पार्टी की शतरंज की बिसात पर केजरीवाल बनाम कुमार विश्वास की बाज़ी आगे जारी रह सकती है. कुमार विश्वास ने इशारा कर दिया है कि वो शहीद हुए हैं लेकिन उनके समर्थकों का युद्ध जारी रहेगा. गौर करने वाली बात है कि कुमार विश्वास ने अपने समर्थकों से ये अपील नहीं कि वो पार्टी के प्रति निष्ठा दिखाएं. उन्होंने अपने समर्थकों से कहा है- ‘मैं अपना युद्ध लड़ रहा हूं, आप अपना युद्ध लड़िए…सबको लड़ने ही पड़े अपने-अपने युद्ध.’
इस युद्ध की शुरुआत भी हो चुकी है. कुमार विश्वास का पत्ता काटकर जिस सुशील गुप्ता को आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है, उनके बारे में सोशल मीडिया पर जानकारियों का अविरल प्रवाह शुरू हो चुका है. कुमार विश्वास ने राय साहब नाम के एक ट्विटर हैंडल से आया पोस्ट शेयर किया है, जिसमें लिखा है- ‘2013 के मोतीनगर विधानसभा चुनाव में जब आप प्रत्याशी चांदना जी के समर्थन में कुमार विश्वास जी जनसभा कर रहे थे और सामने से जब इसी कांग्रेस प्रत्याशी सुशील गुप्ता का बड़ी-बड़ी गाड़ियों का रोड शो निकला तो इसने बड़ी हीन भावना से पार्टी के छोटे से मंच की ओर मुस्कुरा कर देखा. उस वक्त कुमार भाई ने इसकी आंखों में आंखें डालकर गुरूर से कहा था- ‘सुन लो हजारों करोड़ों के उद्योगपति सुशील गुप्ता, तुम्हारे पैसों के आगे पार्टी कार्यकर्ताओं का जुनून जीतेगा.’
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवार सुशील गुप्ता अभी 28 नवंबर 2017 तक कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे. सुशील गुप्ता का एक पुराना पोस्टर भी सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा है, जिसमें उन्होंने केजरीवाल पर जनता के 854 करोड़ रुपये अपने प्रचार पर खर्च करने का आरोप लगाया था और 17 से 24 अक्टूबर तक दिल्ली में ‘वसूली अभियान’ चलाने का एलान किया था. आप से अलग हुए मयंक गांधी का एक ट्वीट आने वाले दिनों में केजरीवाल के लिए कुमार विश्वास कैंप का सबसे बड़ा हथियार बन सकता है. मयंक गांधी ने इस ट्वीट में लिखा है- ‘सुशील गुप्ता को क्यों चुना गया? अब आम आदमी पार्टी और बीएसपी में कोई फर्क नहीं रहा. मैं आज बिना किसी शक के कह सकता हूं कि आप भ्रष्ट हो चुकी है. सांप्रदायिकता और जातीय वोट बैंक की राजनीति के बाद अब हमने आखिरी हद भी लांघ दी है, वो है भ्रष्टाचार.’
केजरीवाल पर राज्यसभा टिकट बेचने का आरोप खुलेआम लगाया जा रहा है. योगेंद्र यादव ने ट्वीट किया है- ‘पिछले तीन साल में मैंने ना जाने कितने लोगों को कहा कि अरविंद केजरीवाल में और जो भी दोष हों, कोई उसे ख़रीद नहीं सकता. इसीलिए कपिल मिश्रा के आरोप को मैंने ख़ारिज किया. आज समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या कहूं? हैरान हूं, स्तब्ध हूं, शर्मसार भी.’
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