नई दिल्ली। दिल्ली के वायु प्रदूषण में ओजोन गैस भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है.यह साल दर साल तेजी से बढ़ रहा है.इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह होगी कि गर्मी के दिनों में यह लगभग रोज ही तय मानकों को पार करने लगा है.इसके बावजूद इस पर काबू पाने के लिए […]
नई दिल्ली। दिल्ली के वायु प्रदूषण में ओजोन गैस भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है.यह साल दर साल तेजी से बढ़ रहा है.इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह होगी कि गर्मी के दिनों में यह लगभग रोज ही तय मानकों को पार करने लगा है.इसके बावजूद इस पर काबू पाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है.
ओजोन गैस मुख्य रूप से गर्मी के दिनों में बनती है.यह तब उत्पन्न होता है जब नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NOx), VOCs (वाष्पशील कार्बनिक यौगिक) और ऑक्सीजन सूर्य के प्रकाश के साथ प्रतिक्रिया करते हैं.यह NOx वाहनों, बिजली संयंत्रों और उद्योगों से निकलने वाले धुएं से उत्सर्जित होता है.
मार्च, अप्रैल, मई और जून के दौरान, ओजोन गैस का स्तर आठ घंटे में 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन यह आमतौर पर 150 से 200 तक दोगुना हो जाता है.यह चिंता का विषय है कि बढ़ती गर्मी और वाहनों की संख्या के कारण साल दर साल, अब हर दिन गर्मियों में ओजोन गैस निर्धारित मानकों से अधिक रहती है.
2018 में, मार्च से जून तक कुल 122 दिनों में से 106 दिनों में ओजोन गैस का स्तर निर्धारित मानक से अधिक था. 2019 में यह संख्या बढ़कर 117 दिन, 2020 में 120 दिन और 2021 में 117 दिन हो गई. इस साल भीषण गर्मी और लू के भी चलन को देखते हुए यह संख्या 122 दिन हो जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
ओजोन गैस के इनहेलेशन से फेफड़ों के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है.ओजोन का थोड़ा उच्च स्तर सीने में दर्द, खांसी, सांस की तकलीफ और गले में खराश पैदा कर सकता है. यह अस्थमा आदि से पीड़ित लोगों के लिए खतरनाक है. ग्रीष्मकालीन कार्य योजना का हिस्सा भी नहीं हाल ही में दिल्ली सरकार ने गर्मियों में वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में 14 सूत्री कार्य योजना तैयार की है, लेकिन इसमें ओजोन के लिए कोई योजना नहीं है.पर्यावरणविदों का कहना है कि ओजोन गैस की रोकथाम का एजेंडा भी टाइम एक्शन प्लान का हिस्सा होना चाहिए.
सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट) क्लीन एयर कैंपेन के प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी के मुताबिक, गर्मियों में प्रदूषण काफी अलग है.हवा के साथ धूल उड़ने का स्तर बढ़ जाता है.वाहन, उद्योग और आग की घटनाएं इसे प्रभावित करती हैं. तापमान भी बहुत अधिक है. ऐसे में ओजोन गैस बनने लगती है.इसे कम करने के लिए सड़कों की मरम्मत, सड़कों को धूल मुक्त रखना और जंगलों को बचाना जरूरी है.