अमृतसर. अमृतसर में दशहरा रावण दहन के दौरान रेल की पटरियों पर खड़े 60 से ज्यादा लोगों की जालंधर एक्सप्रेस से कटकर मरने की खबर इस वक्त की वो खबर है जिसने ना सिर्फ अमृतसर या पंजाब बल्कि देश भर में दशहरे के जश्न को फीका कर दिया है. अमृतसर में सन्नाटा पसरा है तो उन घरों को मातम ने घेर लिया है जिनके जश्न मनाने निकले अपने लोग ट्रेन की चपेट में आकर दुनिया से विदा हो चुके हैं. पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मृतकों के परिजनों को 5 लाख मुआवजा और घायलों के मुफ्त इलाज का ऐलान किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के घर वालों को 2 लाख मुआवजा और घायलों को 50 हजार की मदद की घोषणा की है. अब कुछ जांच भी होगी. कुछ जांच राज्य सरकार कराएगी. कुछ रेलवे भी कराएगा. लेकिन दोनों की जांच में कोई दोषी मिले या ना मिले, किसी को सजा दी जाए या ना दी जाए, जिनके घर के चिराग बुझे हैं, वो दोबारा नहीं जल सकेंगे, ये एक कड़वा सच है.
हादसे से सबक तभी लिया जा सकेगा जब हर आदमी या विभाग अपनी लापरवाही को कबूल करेगा और इस हादसे से सबक लेकर ऐसे दूसरे आयोजनों के दौरान उन चीजों को ना दोहराया जाए. अमृतसर हादसे का तथ्य ये है कि जोड़ा रेलवे फाटक के पास रेल पटरी के किनारे दशहरा रावण दहन का आयोजन किया गया था. पुतला दहन कार्यक्रम में शामिल होने आए लोग मैदान के अलावा रेल लाइन पर भी जमा थे. पुतलों को जलाया गया और पटाखे फटने लगे. पहले से ही रेल लाइन पर जमा लोगों के अलावा मैदान से कुछ और लोग पटरियों की तरफ भागे जो पुतला गिरने के दौरान पटाखों और आग से बचना चाहते थे. पटाखों की शोर में लोगों को उसी वक्त तेजी से आ रही जालंधर एक्सप्रेस ट्रेन की ना तो आवाज सुनाई दी और ना उसकी सीटी. महज 5 सेकेंड के अंदर ट्रेन गुजरी और अपने पीछे छोड़ गई 60 से ज्यादा लोगों के कटे-बिखरे शव. ये तथ्य है. अब बात लापरवाही की.
अमृतसर रेल हादसा में लापरवाही नंबर 1- आयोजकों ने पटरी के बगल में क्यों रखा पुतला दहन
60 से ज्यादा बेगुनाह लोगों की ट्रेन से कटकर मौत में सबसे बड़ी लापरवाही उन आयोजकों की है जिन्होंने रेलवे की पटरी के किनारे रावण का पुतला दहन कार्यक्रम रखा. कहा जा रहा है कि पुतला और पटरी के बीच मात्र 80 मीटर की दूरी थी. मतलब, मैदान बहुत छोटा था. इलाके में और भी मैदान होंगे या खुली जगह, जहां इस तरह के आयोजन रखे जा सकते थे. आरोप है कि आयोजकों में ज्यादातर लोग कांग्रेस के थे इसलिए विपक्ष इसे कांग्रेस का आयोजन बता रहा है जिसमें पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर मुख्य अतिथि बनकर गई थीं. आयोजकों ने अगर ये आयोजन पटरी के किनारे रखकर पहली गलती कर ली थी तो पटरी किनारे होने के कारण लोगों की सुरक्षा के लिए वहां बैरिकेडिंग करा सकते थे, माइक पर अनाउंस कर सकते थे कि लोग पटरी पर ना जाएं, वालंटियर लगाकर लोगों को पटरी से हटा सकते थे, रेलवे फाटक के कर्मचारी से तालमेल बिठाकर ट्रेन के आने से पर्याप्त पहले पटरियों को खाली करा सकते थे. ये सारे काम संभव थे लेकिन कुछ भी नहीं किया गया जो लापरवाही आयोजकों की है और इसके लिए उन पर क्रिमिनल नेग्लिजेंस यानी आपराधिक लापरवाही का केस चलना चाहिए. तभी सबक मिलेगा उनको जो इस तरह के आयोजन करते हैं.
अमृतसर रेल हादसा में लापरवाही नंबर 2- परमिशन नहीं थी तो पुलिस और प्रशासन ने पुतला दहन रोका क्यों नहीं
प्रत्यक्षदर्शी दावा कर रहे हैं कि दशहरा पुतला दहन कार्यक्रम के लिए आयोजकों ने इजाजत नहीं ली थी. इस तरह के आयोजन के लिए प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती है. अगर आयोजकों ने इजाजत नहीं ली तो क्या पुलिस और प्रशासन के लोगों को ये नहीं पता था कि एक ऐसा आयोजन हो रहा है जो रेल लाइन के बगल में है और जहां हजारों लोग जुट सकते हैं और वहां कोई भगदड़ जैसी स्थिति भी हो सकती है. अगर पता था कि इजाजत नहीं है फिर भी उन्होंने इसलिए नहीं रोका कि ये आयोजन कांग्रेस से जुड़े नेताओं ने किया है या उसमें नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर चीफ गेस्ट हैं तो ये पुलिस और प्रशासन की लापरवाही है. ये भी आपराधिक लापरवाही है कि पुलिस और प्रशासन के लोगों ने आयोजकों को ना रोका और ना ही पटरी किनारे आयोजन के मद्देनजर लोगों की सुरक्षा के लिए एहतियात बरतने कहा और ना सिर्फ कहा बल्कि उन पर अमल कराया. आयोजकों ने अगर पटरियों की तरफ जाने के रास्ते बैरिकेडिंग से बंद कर दिए होते तो लोग जाते ही नहीं. चले गए थे तो पुलिस और वालंटियर उनको वहां से हटा देते और लगातार हटाते रहते जब तक आयोजन खत्म ना हो जाए.
अमृतसर रेल हादसा में लापरवाही नंबर 3- रेलवे ने पुतला दहन कार्यक्रम के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया
खबरों से ये साफ है कि पुतला दहन का कार्यक्रम रेल पटरी से 100 मीटर के अंदर था. जाहिर तौर पर ये जमीन रेलवे की होगी क्योंकि रेल की पटरियों के आस-पास की जमीन रेलवे की ही होती है और इस वजह से खाली रहती है. फिलहाल हम ये मानकर चलते हैं कि ये जमीन रेलवे की थी. अगर रेलवे की जमीन पर ये आयोजन हो रहा था और उस आयोजन के दौरान सामान्य हालात में या भगदड़ की स्थिति में लोगों की जान जाने का खतरा था तो रेलवे ने इस आयोजन को रोकने के लिए खुद एक्शन क्यों नहीं लिया जो उसकी ही जमीन पर हो रहा था. आयोजन के पास रेलवे फाटक था जहां तैनात कर्मचारी इस बात की सूचना ऊपर के अधिकारियों को दे सकता था जिसमें केंद्रीय सुरक्षा बल आरपीएफ से लेकर राज्य पुलिस की राजकीय रेल पुलिस या जीआरपी तक के अधिकारी एक्शन लेकर इस आयोजन को रोक सकते थे या इस बात की गारंटी कर सकते थे कि आयोजन के दौरान कोई आदमी रेलवे की पटरी पर ना आ जाए चाहे उसके लिए पटरी किनारे पुलिस लगानी पड़े या वालंटियर या बैरिकेडिंग. इसलिए तीसरी बड़ी लापरवाही रेलवे की भी है जिसने अपनी ही जमीन पर इस तरह का आयोजन होने दिया. अगर आयोजन हो रहा था तो फाटक पर तैनात कर्मचारी ने ट्रेन आने की टाइमिंग और आने-जाने के वक्त आयोजकों से माइक से अनाउंस क्यों नहीं करवाया कि पटरी पर से हट जाएं, फलां ट्रेन आ रही है.
अमृतसर रेल हादसा में लापरवाही नंबर 4- सुरक्षा हटी, दुर्घटना घटी पढ़कर भूल जाने वाले लोग जो अब नहीं रहे
लापरवाही में अगर आयोजक, पुलिस, प्रशासन और रेलवे की जिम्मेदारी तय की जाए तो जवाबदेही उन लोगों की भी बनती है मसला जिनकी जान का है. रेलवे की पटरियां किसी भी आयोजन के लिए दर्शक दीर्घा नहीं है. पटरियां इसलिए बिछाई गई हैं कि उन पर ट्रेन फर्राटे से दौड़ें और ट्रेन पर सवार लोगों को समय पर उनकी जगह तक पहुंचाए. पटरी पर खड़े होकर पुतला दहन देख रहे लोग चाहते थे मैदान में ही रह सकते थे. जगह की कमी थी तो वापस घर लौट सकते थे या पटरी के उस पार से देख सकते थे जहां से दर्जनों लोगों के रिकॉर्ड किए गए वीडियो ही अब हादसे की निशानी हैं. जान है तो जहान है सिर्फ दीवारों पर लिखी कोई इबारत नहीं है, एक नसीहत है जिसे हमेशा अपने साथ रखना और आत्मसात करना चाहिए. आयोजक ने गलत किया, पुलिस ने गलत करने दिया, प्रशासन ने आंख मूंद ली, रेलवे वाले भी भूल गए, फिर भी सबकी जान बच सकती थी अगर उनमें कोई किसी भी सूरत में उस रेल ट्रैक पर नहीं जाता जो असल में ट्रेन के चलने के लिए बनाई गई हैं.
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