लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के प्राइमरी स्कूलों में टीचर्स की गैरहाजिरी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि इससे शिक्षा व्यवस्था की जड़ें कमजोर हो रही हैं और बच्चों के भविष्य पर बुरा असर पड़ रहा है। कोर्ट ने ऐसे शिक्षकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जरूरत बताई है। यह टिप्पणी कोर्ट ने बुलंदशहर की असिस्टेंट टीचर पूनम रानी की याचिका को खारिज करते हुए की है।
हाईकोर्ट के जस्टिस अजय भनोट की सिंगल बेंच ने पूनम रानी की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने अपने ट्रांसफर को चुनौती दी थी। याचिका तीन साल की देरी से दाखिल की गई थी और इस देरी का कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपनी पसंद की जगह पर तैनाती पाने का अधिकार नहीं है। आगे अदालत ने कहा कि ट्रांसफर सेवा का हिस्सा होता है और अदालतें केवल विशेष परिस्थितियों में ही इसमें दखल दे सकती हैं।
पूनम रानी बुलंदशहर के अनहेडा इलाके के एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त थीं। बाद में उनका उच्च प्राथमिक विद्यालय, सेमाली में ट्रांसफर कर दिया गया, जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने कहा कि ट्रांसफर के संबंध में कोई दुर्भावना या वैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं हुआ है।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पूनम रानी के खिलाफ यह शिकायतें मिली हैं कि वह स्कूल में समय से नहीं आतीं और समय से पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे शिक्षकों की लापरवाही बच्चों के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है और प्राइमरी शिक्षा को कमजोर कर रही है। हाईकोर्ट ने विभागीय अधिकारियों को मामले की जांच कर उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया है।
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