देश में 10 शरियत कोर्ट खोलेगा मुस्लिम लॉ बोर्ड, कहा- निकाह हलाला को चुनौती नहीं दी जा सकती है

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने देश में 10 शरियत कोर्ट खोलने की बात कही है. निकाह हलाला का मामला जहां सुप्रीम कोर्ट में है, वहीं मुस्लिम लॉ बोर्ड ने तर्क दिया है कि निकाह हलाला कुरान की एक प्रथा है. इसे चुनौती नहीं दी जा सकती.

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देश में 10 शरियत कोर्ट खोलेगा मुस्लिम लॉ बोर्ड, कहा- निकाह हलाला को चुनौती नहीं दी जा सकती है

Aanchal Pandey

  • July 16, 2018 5:58 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्लीः ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने देश में शरियत कोर्ट खोलने की बात कही है. जिसके बाद से सियासी घमासान मचा हुआ है. मुस्लिम लॉ बोर्ड का कहना है कि वह देश में मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए 10 शरियत कोर्ट खोलेगा. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुस्लिम लॉ बोर्ड ने निकाह हलाला के पक्ष में दलील देते हुए कहा है कि यह कुरान की एक प्रथा है. इसे हरगिज चुनौती नहीं दी जा सकती.

AIMPLB के सचिव और लीगल मामले देखने वाले जफरयाब जिलानी ने कहा कि निकाह हलाला इस्लाम में एक प्रथा है. इसके तहत अगर आप अपनी पत्नी को तलाक दे देते हैं और फिर उससे निकाह करना चाहते हैं तो उसके लिए आपकी पत्नी को किसी अन्य पुरुष से शादी करके उसके साथ जिस्मानी संबंध बनाने होते हैं. फिर उसे तलाक देने के बाद ही वह आपके साथ निकाह कर सकती है.

जिलानी ने आगे कहा कि यह प्रथा कुरान पर आधारित है. मुस्लिम लॉ बोर्ड इससे उलट विचार नहीं रख सकता है. देश में पैसों के लिए चल रहे निकाह हलाला के रैकेट पर जिलानी ने कहा कि महज हलाला के लिए किया गया निकाह इस्लाम में मान्य नहीं है. इस तरह के रैकेट में लिप्त आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.

जिलानी ने अपनी बात रखते हुए आगे कहा कि बोर्ड देश के 10 शहरों में शरियत कोर्ट खोलेगा. उन्होंने बताया कि 22 जुलाई को पहली कोर्ट सूरत में स्थापित की जाएगी. महाराष्ट्र में सितंबर तक दारुल कजा शुरू की जाएगी. जिसके बाद नवंबर में शरियत कोर्ट खोल दिया जाएगा. फिलहाल दारुल कजा सिर्फ मदरसों तक ही सीमित है. यहां लोग शादी और जमीन-जायदाद आदि से जुड़े मामले लेकर पहुंचते हैं.

जिलानी ने शरिया का मतलब समझाते हुए कहा कि इस्लाम में शरिया का अर्थ कुरान और पैगंबर मोहम्मद की सीख के आधार पर बनाए गए कानून से है. शरियत कोर्ट के असंवैधानिक होने का सवाल ही नहीं होता. यह पूरी तरह से वैध है. बता दें कि निकाह हलाला के खिलाफ मिली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 20 जुलाई से सुनवाई शुरू कर सकता है.

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