लखनऊ: उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के दौरान कई समाजवादी पार्टी के विधायकों ने बीजेपी के समर्थन में वोट डाला था . उसके बाद से ही इन विधायकों में बगावती तेवर देखने को मिल रहे है. अब समाजवादी पार्टी इन विधायकों के खिलाफ एक्शन लेने वाली हैं. दल-बदल कानून के तहत समाजवादी पार्टी इन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करेगी. आपको को बता दें कि राज्यसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी के विधायक मनोज पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, राकेश पांडेय, विनोद चतुर्वेदी, पूजा पाल और आशुतोष मौर्य ने बीजेपी के समर्थन में मतदान किया था
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के समय सपा के विधायकों ने बीजेपी के पक्ष में वोट डाला था और लोकसभा चुनाव में भी ये विधायक बीजेपी के साथ नजर आए थे. समाजवादी पार्टी का कहना है कि सभी विधायकों ने बीजेपी के लिए काम किया जबकि वो समाजवादी पार्टी से विधायक हैं. इन सभी विधायकों को खुद इस्तीफा दे देना चाहिए. अगर इस्तीफा नहीं देते हैं तो इनकी सदस्यता दल-बदल कानून के तहत कैंसिल की जाएगी.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल चंद हसन ने कहा कि समाजवार्दी पार्टी बाकी विधायकों के खिलाफ पत्र जारी करेगी और उसके बाद स्पीकर के सामने दल-बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता कैंसिल करवाएगी .अगर इनकी सदस्यता कैंसिल करने में कोताही बरती जाती है तो कोर्ट का भी रास्ता है. गद्दार विधायकों को सबक सिखाने के लिए ये कार्य करना होगा.
बीजेपी के नेता मनीष शुक्ला ने कहा कि विधायकों की सदस्यता समाप्त करने के लिए कानून है लेकिन अखिलेश यादव को ये भी नियम पढ़ना चाहिए कि कोई भी विधायक किसी भी पार्टी को वोट दे सकता है. बस उसको अपना वोट एजेंट को दिखाना पड़ता है कि वो किसको वोट दे रहा है. अखिलेश को कम से कम नियम कानून पढ़ना चाहिए.
दल-बदल कानून की शुरूआत 1967 में हुआ था जब हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदल ली पहले वो कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में शामिल हुए. उसके बाद फिर कांग्रेस में लौटे फिर 9 घंटे के अंदर ही यूनाइटेड फ्रंट में शामिल हो गए. तब से ही राजनीति में आया राम गया राम शुरू हो गया. पद और पैसे के लालच में होने वाले दल-बदल को रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार 1985 में दल-बदल कानून लेकर आई. इस कानून में कहा गया है कि कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वॉइन करता है तो दल-बदल कानून के अतंर्गत उसकी सदस्यता जा सकती है. अगर कोई सदस्य सदन में किसी मुद्दे पर मतदान के समय अपनी पार्टी के व्हिप का पालन नहीं करता है, तब भी उसकी सदस्यता जा सकती है.
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