भारत ने बचाई पाकिस्तान की बेटी की जान

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर लोग भले ही कुछ भी कहें लेकिन दोनों देशों को एक साथ जोड़ने की कई कहानियां अक्सर सामने आती रहती हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें भारत के लोगों ने मिलकर पाकिस्तान की बच्ची सबा अहमद को एक नई जिंदगी दी है.

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भारत ने बचाई पाकिस्तान की बेटी की जान

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  • October 14, 2015 9:34 am Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago
मुंबई. भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर लोग भले ही कुछ भी कहें लेकिन दोनों देशों को एक साथ जोड़ने की कई कहानियां अक्सर सामने आती रहती हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें भारत के लोगों ने मिलकर पाकिस्तान की बच्ची सबा अहमद को एक नई जिंदगी दी है.
 
सबा ‘विल्सन्स डिजीज’ नाम की बीमारी से पीड़ित
आपको बता दें कि 15 साल की सबा ‘विल्सन्स डिजीज’ नाम की एक बीमारी से पीड़ित हैं जिसमें शरीर के अलग-अलग अंगों में तांबा जमा होने लगता है. इसके कारण शरीर का वह अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है. 
 
बीबीसी में छपी खबर के अनूसार, सबा का इलाज जसलोक अस्पताल में चल रहा है. फिलहाल वह पहले से बेहतर हैं. सबा का इलाज करने वाली डॉक्टर आभा नगराल ने बताया कि, ‘सबा का इलाज पूरी ज़िंदगी चलेगा. एक बार स्टेबल हो जाए तो दवाइयां जारी रखनी होंगी.
 
नाज़िया को मना किया था पाकिस्तानी पहचान बताने से
पाकिस्तान में लोगों ने सबा की मां नाजिया से कहा था कि वे यह बात ना बताऐं कि वे पाकिस्तानी हैं वर्ना उसके साथ इंडिया में अच्छा व्यवहार नहीं किया जाएगा. सबा के इलाज के बाद नाज़िया ने कहा कि यहां के लोग बहुत ही प्यार देने वाले हैं और लोग सबा के लिए छुप छुप कर खाना भी लाते थे. मुझे ऐसा लगा ही नहीं कि मैं पाकिस्तान में नहीं हुं. उन्होंने बताया कि सबा को अप्रैल में भारत लाया गया लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि वो इलाज का ख़र्चा उठा सकें. 
 
ब्लू बेल्स नाम के एनजीओ ने की मदद
ब्लू बेल्स नाम के एनजीओ की संस्थापक शाबिया वालिया ने उनकी मदद की. शाबिया ने कहा कि ‘अप्रैल में मेरे पास एक व्हाट्सऐप मैसेज आया था. जिसमें मैंने सबा की फ़ोटो देखी. जो अस्पताल में भी मुस्कुरा रही थी. इसके बाद मैंने उसे फोन किया. ‘नाज़िया ने मुझे बताया कि वो अस्सी हज़ार रुपये लेकर मुंबई आई थीं लेकिन इलाज में दो लाख का बिल आ गया है और उन्हें पैसों की ज़रूरत है. उसके बाद मैं 30-35 हज़ार जमा करके उनसे मिलने गई. तब से एक रिश्ता बन गया और अप्रैल से जून के बीच हमने उनकी सात लाख रूपए की मदद की.
 
भारत से मिली मदद लेकिन कराची से है एक फ़ोन कॉल का इंतजार
शाबिया को रोज़ मदद की पेशकश के लिए फ़ोन आते हैं लेकिन उन्हें अब भी कराची से फ़ोन कॉल का इंतज़ार है. 

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