मुजजफरनगर. दो साल गुजरने के बाद भी मुज़्ज़फरनगर दंगों में रेप का शिकार हुई महिलाएं अभी भी न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं. अंग्रेजी अखबार
हिंदुस्तान टाइम्स के ऑनलाइन संस्करण में छपी खबर के मुताबिक दंगों में रेप का शिकार बनीं 6 रेप पीड़िताओं द्वारा केस दर्ज कराए गए थे जिनमें 5 केस की सुनवाई चल रही है. एक केस विक्टिम की अपील पर दुबारा से खोला गया है, हालांकि आरोपी का वकील केस के दुबारा से शुरु होने पर विरोध में याचिका दायर खर्च कर चुका है.
क्या कहती हैं पीड़िताएं ?
लोई गांव की एक पीड़िता का कहना है कि उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई है. वहीं पीड़ित के पति अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए कहता है कि हमारे पास अपने बच्चों के लिए दवाई दिलवाने के लिए पैसे नहीं हैं, ऐसे में आप हमसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम केस लड़ पाएं. कांधला की चमन कॉलोनी में रहने वाले पीड़िता के ससुर कहते हैं कि रेप करने के 19 से 30 साल की उम्र के आरोपी जमानत पर रिहा हैं और कोर्ट के बाहर ही केस निपटाने का दबाव बना रहे हैं.
पीड़ित महिलाओं का केस लड़ने वाली सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर का कहना है कि आरोपी अदालती कार्रवाई में जानबूझकर देर कर रहे हैं ताकि उन्हें पीडितों के साथ समझौता करने का समय मिल जाए और वो केस वापिस लेलें. ग्रोवर की बात की तस्दीक करते हुए लोकल वकील सज्जाद के मुताबिक 6 में से 5 केसों की सुनवाई फास्ट ट्रेक कोर्ट में चल रही है आरोपियों के परिवारों से धमकी मिलने के बाद दो पीड़िताओं ने आरोपी को पहचानने से इनकार कर दिया है. हालांकि आरोपी को सजा चश्मदीद गवाह और डॉक्टरी रिपोर्ट पर निर्भर करती है, सज्जाद के मुताबिक 16 से 22 आरपी जेल से बाहर हैं.
रेप पीड़िताओं का आरोप है कि स्थानीय नेता रेप विक्टिम करने की मदद करने के बजाय आरोपियों को ही आर्थिक मदद कर रहे हैं. अस्तित्व नाम की संस्था चलाने वाली सोशल एक्टिविस्ट रिहाना अदीब के मुताबिक कुछ ही पीड़ित महिलाएं केस दर्ज कराने आगे आती हैं. 2012 में हुए इन दंगों में 34 लोगों की मौत हो गई थी और 456 लोग घायल हुए थे