नई दिल्ली. शाकाहार को बढ़ावा देने और मांसाहार छोड़ने के लिए वक्त-वक्त पर सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर अभियान चलाए जाते रहते हैं. इन्हें लेकर कभी किसी को कोई ऐतराज नहीं हुआ, लेकिन मांसाहार को सीधे बैन ही कर दिया जाए, ये बात कोई हजम करने को तैयार नहीं है.
महाराष्ट्र में यही हो रहा है. जैन समाज के पर्यूषण पर्व के दौरान मुंबई में चार दिनों तक मांस की बिक्री प्रतिबंधित कर दी गई है. ये फैसला हालांकि बीएमसी का है, लेकिन निशाने पर सीधे महाराष्ट्र सरकार और बीजेपी आ गई हैं. आरोप लग रहे हैं कि बीजेपी तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है और बगावत का झंडा खुद उसकी सहयोगी शिवसेना ने बुलंद कर रखा है.
सवाल उठ रहे हैं कि एक आजाद मुल्क में इस तरह के फतवेनुमा फैसले सुनाने का क्या मतलब है. कुछ लोग तो इसे धार्मिक आतंकवाद का नाम भी दे रहे हैं तो बड़ी बहस में आज का मुद्दा यही है कि, लोग क्या खाएं, कब खाएं, ये तय करना सरकार का काम है क्या ?