नई दिल्लीः बालू खनन की ऑनलाइन नीलामी के लिए अब योगी सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. योगी सरकार ने कोर्ट में दायर याचिका में बताया है कि बालू खनन के लिए ई-टेंडरिंग प्रक्रिया पारदर्शी और उचित प्रक्रिया है, ऐसे में एनजीटी के अंतरिम आदेश पर रोक लगाई जाए. एनजीटी ने अपने आदेश में राज्य सरकार को खनन के लिए टेंडर खोलने से रोक दिया था. जिसके बाद 12 अक्टूबर को जारी दूसरे आदेश मे एनजीटी ने कहा कि ऑनलाइन नीलामी की पूरी प्रक्रिया और कार्रवाई एनजीटी के अंतिम फैसले के अधीन होगी. अब इस मामले में मंगलवार को सुनवाई होगी.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद पुराने खनन के पट्टे निरस्त करते हुए नए पट्टे ई-टेंडरिंग के माध्यम से कराने का निर्णय लिया गया था. 22 सितंबर को एनजीटी ने यूपी में खनन को लेकर शुरू होने जा रही ई-टेंडरिंग प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में बालू खनन के लिए ई-टेंडर एक अक्टूबर से जारी होने थे. ई-टेंडर जारी होने से ठीक पहले एनजीटी ने यूपी सरकार को झटका देते हुए टेंडर प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी.
उत्तर प्रदेश में पहले से ही कई महीनों से ठप बालू खनन के कारण बहुत सारे प्रोजेक्ट अधर में लटके हुए हैं. घर बनाने में भी लोगों को काफी दिक्क़तों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बालू की आपूर्ति बड़ी मुश्किल से हो पा रही है. यूपी के कई बड़े प्रोजेक्ट के लिए बिहार से बालू मंगाई जा रही है. इन सबके बीच पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के आठ जिलों में शुरू होने जा रही ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी.
सरकार का इस मामले में कहना है कि उसने नियमों और कानून में मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए बीते 14 अगस्त को नदी किनारे की बालू, मौरंग और बजरी के खनन के बारे में नई नीति जारी की थी. राज्य सरकार ने केन्द्र की किसी गाइडलाइन का उल्लंघन नहीं किया है. लिहाजा प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से एनजीटी के आदेश को रद्द करने की मांग की है. कोर्ट अब सरकार की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगा.