भागलपुरः कभी पिता भागलपुर सिविल कोर्ट में चपरासी थे और आज उनकी बेटी बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा में सफलता पाकर सिविल जज बन गई है. मगर किस्मत का लिखा देखिए, परिवार चाह कर भी उस पिता को इसकी सूचना नहीं दे सकता क्योंकि साल 2013 में रिटायर हो चुके जगदीश साह इस समय भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं. वह गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं. गुरुवार को उनकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई. डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह देते हुए किसी से भी बात करने से मना किया है. डॉक्टरों के मुताबिक, गुरुवार देर शाम तक उन्हें दूसरे शहर रेफर किया जाएगा.
मिली जानकारी के अनुसार, जगदीश साह की बेटी जूली कुमारी जब बुधवार को 29वीं बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा में सफलता पाकर सिविल जज बनी तो परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. रिजल्ट आने के बाद जूली के मायके और ससुराल वाले खुशी से झूम उठे. मगर परिवार के मुखिया जगदीश साह बेटी की इस उपलब्धि से बेखबर हैं. वह नहीं जानते कि जिस सिविल कोर्ट में चपरासी की नौकरी करते हुए उनकी जिंदगी बीत गई, जजों के रूबाब को देखते हुए उनकी उनकी आंखें बूढ़ी हो गईं, जजों को सलाम ठोकते हुए उनके हाथों में झुर्रियां पड़ गईं, अब उनकी बेटी भी ऐसी ही किसी कोर्ट में जज होगी और इंसाफ का फरमान सुनाएगी.
जगदीश साह के पड़ोसियों का कहना है कि जब वह (जगदीश) यह खबर सुनेंगे तो उनकी खुशी का भी ठिकाना नहीं रहेगा. जगदीश के परिवार और जूली के ससुराल में बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है. अपने संघर्ष के बारे में बताते हुए जूली कहती हैं कि उन्होंने सरकारी स्कूल से 2004 में हाईस्कूल और 2006 में इंटर की परीक्षा पास की. उसके बाद उन्होंने टीएनबी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई करके 2011 में डिग्री हासिल कीं. परीक्षा पास करने के बाद वह बिहार न्यायिक सेवा की परीक्षा की तैयारी में जुट गईं.
इसी बीच 2009 में कजरैली के केलापुर गांव में सुबल कुमार से जूली की शादी हो गई. जूली के पति सुबल दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते हैं. साधारण परिवार में जन्मी जूली को पढ़ाई से बेहद लगाव था. यह लगाव शादी के बाद भी कम न हुआ. सुबल ने भी जूली की लगन देखते हुए उनका साथ दिया. इसी साल 24 से 28 मार्च के बीच वह पहली बार न्यायिक सेवा की परीक्षा में वह शामिल हुईं और रिजल्ट का इंतजार कर रही थीं. जूली कहती हैं कि वह अपनी सफलता को लेकर आश्वस्त थीं. जूली को इस बात का दुख है कि वह यह खुशखबरी अभी तक अपने पिता को नहीं सुना पाईं हैं.