भोपाल: सोमवार को बेंगलुरु के अस्पताल में नवजात बच्ची की इलाज ना मिलने की वजह से मौत हो गई. आरोप है कि अस्पताल ने ये कहकर इलाज करने से मना कर दिया कि मध्य प्रदेश सरकार की जिस स्कीम की तहत ये परिवार इलाज कराने आया है उसका पहले से ही 6 करोड़ रूपये बाकी है जो सरकार ने अभी तक नहीं दिया है.
जानकारी के मुताबिक बच्ची के पिता मनोज वर्मा फल विक्रेता है. बच्ची के जन्म के बाद उन्हें पता चला कि उनकी बच्ची के दिल में छेद है. आर्थिक रूप से लाचार मनोज अपनी बच्ची को लेकर बेंगलुरु के नारायण इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डिक साइंस लेकर गए. उन्हें उम्मीद थी कि मध्य प्रदेश सरकार के राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) और मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना (MBHUY) के तहत उनकी बच्ची की इलाज हो जाएगा.
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत हृदय रोग से पीड़ित 0 से 18 साल तक के बच्चों के सभी टेस्ट मुफ्त और मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना के तहत मुफ्त ऑपरेशन का प्रावधान है.
इसके बावजूद अस्पताल ने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत फ्री जांच के लिए ये कहते हुए इनकार कर दिया कि मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से अभी तक उन्हें बकाया 6.3 करोड़ रूपये नहीं मिले हैं. पिता मनोज वर्मा के मुताबिक अस्पताल ने सिर्फ जांच के लिए उनसे 86 हजार रूपये मांगे जबकि ऑपरेशन में कितना खर्च आएगा इसकी जानकारी नहीं दी.
उनका आरोप कि पैसों की किल्लत की वजह से उनकी नवजात बच्ची ने दम तोड़ दिया जो 23 अगस्त को ही पैदा हुई थी. धार जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. आर सी पनीका ने बेंगलुरु अस्पताल को चिट्ठी लिखकर कहा है कि उन्हें बकाया राशि के बारे में कोई जानकारी नहीं है. डॉ. पनीका ने ही मनोज को अस्पताल के नाम चिट्ठी दी थी जिसमें सरकारी स्कीम के तहत उनकी बच्ची का इलाज करने को कहा गया था.
बच्ची की मौत के बाद अस्पताल प्रशासन इस आरोप से साफ साफ मना कर रहा है कि इलाज की वजह से बच्ची की मौत हुई. डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची को ऑब्जरवेशन में रखा गया था लेकिन बच्ची के घरवाले ही उसे अस्पताल से ये कहकर ले गए कि वो उसे वापिस लेकर आएंगे.