भारत और बांग्लादेश के बीच जून में हुआ जमीन की अदला-बदली का ऐतिहासिक समझौता 1 अगस्त से लागू हो रहा है. इसी समझौते के लागू होने के साथ भारत की 111 कॉलोनियां बांग्लादेश की हो जाएंगी और और बांग्लादेश की 51 कॉलोनियां भारत की.
नई दिल्ली. भारत और बांग्लादेश के बीच जून में हुआ जमीन की अदला-बदली का ऐतिहासिक समझौता 1 अगस्त से लागू हो रहा है. इसी समझौते के लागू होने के साथ भारत की 111 कॉलोनियां बांग्लादेश की हो जाएंगी और और बांग्लादेश की 51 कॉलोनियां भारत की.
भारत में जिन राज्यों की कॉलोनियों की अदला-बदली होगी, वह हैं असम, मेघालय, त्रिपुरा और पश्चिमबंगाल. एक अनुमान के मुताबिक, इस फैसले की जद में आने वाली भारतीय कॉलोनियों में करीब 37 हजार लोग रहते हैं. वहीं बांग्लादेशी कॉलोनियां में 14 हजार लोग रहते हैं. यानी देश के इन नए 14 हजार नागरिकों को नए पिन कोड का तोहफा आज मिलेगा. भारत की कॉलोनियों में रहने वाले करीब 37 हज़ार लोगों में से 980 लोग ही भारत लौट रहे हैं और ये सभी बेहद गरीब तबके हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली बांग्लादेश की यात्रा के दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच ये समझौता जून में हुआ था. इस दौरे की खास बात यह भी थी कि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी प्रधानमंत्री के साथ बांग्लादेश गई थीं जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे के वक्त उन्होंने जाने से इनकार कर दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समझौते की तुलना बर्लिन की दीवार गिरने वाली घटना से करते हुए कहा था कि अगर इस तरह का समझौता दुनिया में कहीं और हुआ होता तो इसे नोबेल सम्मान मिलता, लेकिन हम गरीब देश हैं इसलिए कोई नहीं पूछेगा.
भारत और बांग्लादेश के इस समझौते के चलते जहां बांग्लादेश को 10 हजार एकड़ जमीन मिलेगी, वहीं भारत को सिर्फ 500 एकड़ जमीन मिलेगी. इस समझौते को भारत में मई महीने में संसद ने पास किया था. इसका जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश में कहा था कि भारत की ससंद में सभी दलों के द्वारा पारित किए गए इस समझौते से पता चलता है कि बांग्लादेश और भारत कितने अहम सहयोगी हैं.
भारत और बांग्लादेश के बीच ज़मीन की अदला-बदली का पहला समझौता 16 मई 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री मुजीबुर्र रहमान के बीच हुआ था. बांग्लादेश की संसद ने इस समझौते को 1974 में ही मंजूरी दे दी थी, लेकिन समझौते के लिए जमीन की अदला-बदली के लिए भारत में संविधान संशोधन की जरूरत हुई, जिसके चलते समझौते को आखिरी रूप देने में इतना वक्त लग गया.
एजेंसी