पटना: नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद से लालू प्रसाद यादव उसने जुड़े मर्डर केस को मीडिया के सामने जोर-शोर से उठा रहे हैं. इसके जरिए लालू यादव ये दिखाने की कोशिश कर रहे हैं नीतीश कुमार का दामन भी पाक साफ नहीं है. लगातार हमलावर होते जा रहे लालू प्रसाद यादव के आरोपों का जवाब देने के लिए जेडीयू ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनके सवालों का जवाब दिया.
जेडीयू नेता लल्लन सिंह ने कहा कि ‘लालू यादव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई तथ्यों को तोड़-मरोड़कर ऐसे पेश किया जैसे उन्होंने कोई बड़ा तीर मार लिया हो. उन्होंने बताया कि 16 नवंबर 1991 में लोकसभा चुनावों के दौरान पंडारक थाना इलाके में हत्या हुई थी और 17 नवंबर 1991 को एफआईआर दर्ज हुई थी जिसमें पांच अभियुक्त बनाए गए.
लालू यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए हुई थी घटना
‘इस घटना के दो साल के बाद 31 जनवरी 1993 को पुलिस ने तीन अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की. ये दो लोग थे दिलीप सिंह, योगेंद्र यादव और बौधू यादव जबकि और बाकी के दो अभियुक्तों को आरोप मुक्त करते हुए खिलाफ पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट दाखिल की.’
हाई कोर्ट ने मामले पर लगाया था स्टे
लल्लन सिंह ने आगे बताया कि ‘ 5 अगस्त 2008 को एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने तीन आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लिया और बाकी के दो लोगों को आरोप मुक्त किया जिनमें नीतीश कुमार भी शामिल थे. इसके बाद 22 अप्रैल 2009 को योगेद्र यादव मामले को हाईकोर्ट ले गए जहां हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले पर एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में मामले की सुनवाई पर स्टे रहेगा.
‘इसके बाद अशोक सिंह नाम के एक शख्स ने कोर्ट में शिकायत याचिका दायर करते हुए कहा की नीतीश कुमार को आरोप मुक्त किया जाने का फैसला गलत है. कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए 20 अगस्त 2009 को नीतीश कुमार के खिलाफ समन जारी कर दिया. नीतीश कुमार ने इस समन को हाईकोर्ट में चुनौती थी जिसके बाद हाईकोर्ट ने 8 सितंबर 2009 को एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को आदेश दिया कि इस मामले पर सुनवाई बंद रहेगी.’