पटना: बिहार बोर्ड के इंटर आर्ट्स के टॉपर गणेश कुमार का पता झारखंड का गिरिडीह निकलने के बाद एक तरफ परीक्षा के सिस्टम पर सवाल उठ खड़ा हुआ है तो दूसरी तरफ बिहार बोर्ड सवालों के घेरे में है कि क्या वो ऐसे स्कूलों पर लगाम लगाएगा जो वर्षों से एडमिशन रैकेट का हिस्सा बने हुए हैं.
बिहार का शेखपुरा और समस्तीपुर जिला लंबे समय से बोर्ड परीक्षा में अच्छे रिजल्ट के लिए कुख्यात रहा है. इन दो जिलों से बिहार तो बिहार, बिहार के बाहर के लोग भी आकर बोर्ड की परीक्षा देते हैं ताकि अच्छे नंबर से पास कर सकें. तरीका बस यही है कि पैसा फेंको, तमाशा देखो.
मनमाने पैसे दो तो स्कूल वाले बैक डेट में दाखिला से लेकर हाजिरी तक लगा देंगे और आप परीक्षा पास कर लो क्योंकि उनका सेंटर जिन स्कूलों में पड़ता है वहां उनकी कुछ न कुछ सेटिंग होती है. नहीं तो कोई आदमी सैकड़ों किलोमीटर दूर किसी स्कूल में क्यों दाखिला लेगा जहां ना वो रोज जा सकता है, ना रोज पढ़ सकता है. स्कूल भी कई ऐसे जहां रोज पढ़ाई ही ना होती हो.
गणेश ने इंटर की परीक्षा में संगीत और होम साइंस ऑप्ट किया. होम साइंस सिर्फ लड़कियां लेती हैं जिसे बाद में उसके स्कूल ने सुधार लिया होगा इसलिए वो होम साइंस की परीक्षा में शामिल नहीं हुआ. संगीत की परीक्षा में उसे लिखित परीक्षा में 30 में 18 और प्रैक्टिकल में 70 में 65 कुल 83 नंबर आता है. संगीत की प्रायोगिक परीक्षा का नंबर ऐसा है कि वो टॉपर बन जाता है.
हिन्दी में भी गणेश को 100 में 92 नंबर आए हैं जिसका मलतब ये समझा जा सकता है कि उसकी हिन्दी बहुत ही शानदार है. वैसे बिहार में हिन्दी कितनी भी शानदार हो, 100 में 92 नंबर आया है, ये सुनकर कोई भी दांतों तले ऊंगली दबा लेगा.
इस तरह से एडमिशन रैकेट चलाने वाले तमाम स्कूलों में प्रैक्टिकल में 90 परसेंट तक नंबर देने का वादा किया जाता है ताकि स्टुडेंट को लिखित में नंबर कम भी मिले तो वो प्रैक्टिकल मिलाकर अच्छे नंबर ले आए. शायद यही वजह रही होगी कि गिरिडीह से 250 किलोमीटर दूर गणेश समस्तीपुर के चकहबीब स्कूल में दाखिला लेता है.
स्कूल वाले कह रहे हैं कि वो समस्तीपुर में किराए के मकान में रहकर क्लास करने चकहबीब के इस स्कूल जाता था. कोई भी ये सुनकर हंसेगा कि झारखंड का कोई लड़का समस्तीपुर जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर एक ऐसे गांव के स्कूल में दाखिला लेता है जहां रोज जाने के लिए समस्तीपुर से बस भी नहीं जाती. बस से आप ताजपुर तक जा सकते हैं. वहां से आगे चकहबीब जाने के लिए कुछ और इंतजाम चाहिए.
सबसे बड़ा सवाल, चकहबीब का रामनंदन सिंह जगदीप नारायण उच्च माध्यमिक विद्यालय क्या सैनिक स्कूल है या नेतरहाट विद्यालय कि गिरिडीह से कोई लड़का चलकर उस स्कूल में पढ़ने जाता है. वैसे, तिलैया का सैनिक स्कूल और झारखंड का ही नेतरहाट विद्यालय गिरिडीह के पास ही है जो बिहार और झारखंड में पढ़ाई के मामले में नंबर 1 माना जाता है.
लाइव सिटीज के मुताबिक गणेश के स्कूल एडमिशन फॉर्म पर एडमिशन की तारीख तक नहीं है. फॉर्म पर स्थायी पता में गिरिडीह दर्ज है लेकिन वर्तमान पता खाली है. अगर वो समस्तीपुर में किराए पर रह रहा था तो वो पता वर्तमान पता में होना चाहिए था.
आप ये कह सकते हैं कि गणेश ने दाखिला के बाद किराए पर मकान लिया होगा इसलिए वर्तमान पता नहीं डाला लेकिन जब आपको ये पता चलेगा कि गणेश ने 10वीं बोर्ड की परीक्षा भी इसी समस्तीपुर जिले के शिवाजीनगर प्रखंड के संजय गांधी हाई स्कूल से पास किया तो ये मान लेना होगा कि वो समस्तीपुर में ही रह रहा था.
वैसे अद्भुत बात ये है कि गणेश के मैट्रिक वाले स्कूल से इंटर वाले स्कूल के बीच की दूरी भी करीब 100 किलोमीटर है. मतलब, झारखंड का एक लड़का मैट्रिक की परीक्षा शिवाजीनगर से देता है और इंटर की परीक्षा ताजपुर से. स्कूली पढ़ाई की जैसी सारी गंगा बिहार के समस्तीपुर जिले में ही बह रही थी कि वो कभी इस स्कूल तो कभी उस स्कूल में भटक रहा था.
गणेश के मैट्रिक और इंटर दोनों समस्तीपुर से करने का एक दूसरा मतलब ये भी है कि लड़का कम से कम समस्तीपुर में 4 साल रहा है लेकिन ऐसा कोई प्रमाण अब तक तो सामने नहीं आया है कि गणेश समस्तीपुर में रहा या रहता है क्योंकि रिजल्ट के बाद ही मीडिया वाले उसे खोज रहे हैं पर वो कहीं मिल नहीं रहा.
गणेश सच में इतना मेधावी है कि वो बिहार में इंटर आर्ट्स का टॉपर बन गया या इसमें प्रैक्टिकल में नंबर का दरिया बहाने वाले उसके स्कूल का खेल है, ये तब तक सामने नहीं आएगा जब तक गणेश सामने ना आ जाए और सामने आकर संगीत की अपनी विलक्षण प्रतिभा की नुमाइश ना कर दे.
पिछले साल हाजीपुर की रहने वाली रूबी कुमारी ने आर्ट्स स्ट्रीम में टॉप किया था. उसे अपने सब्जेक्ट के नाम तक ठीक से याद नहीं थे. जिसके बाद खूब बवाल मचा था और बिहार बोर्ड पर कई सवाल उठे थे.
पॉलिटिकल साइंस में 100 में 91 नंबर लाने वाली रूबी से जब पॉलिटिकल साइंस क्या है, पूछा गया तो उसका जवाब वह नहीं दे पाई थी. इसके अलावा पॉलीटिकल साइंस को ‘प्रोडिकल साइंस’ बोलने के कारण न सिर्फ रूबी का मजाक उड़ा था बल्कि बिहार की पूरी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए थे.