सुप्रीम कोर्ट में इंदौर की महारानी उषा देवी जमीन की लड़ाई हार गई है. 500 एकड़ जमीन पर दावे के सबूत नहीं पेश कर पाई. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के हक़ में फैसला सुनाया. साथ ही हाई कोर्ट के आदेश को रद्द भी कर दिया. इंदौर शहर और आसपास के गांवों में फैली 12 सौ एकड़ जमीन से महारानी उषादेवी होलकर ट्रस्ट का दावा खारिज कर दिया गया है. यानी यह 5000 करोड़ कीमत की जमीन अब सरकार की हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का व्यापक असर होगा और 2010 से रुका एयरपोर्ट का विस्तार होगा.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में इंदौर की महारानी उषा देवी जमीन की लड़ाई हार गई है. 500 एकड़ जमीन पर दावे के सबूत नहीं पेश कर पाई. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के हक़ में फैसला सुनाया. साथ ही हाई कोर्ट के आदेश को रद्द भी कर दिया. इंदौर शहर और आसपास के गांवों में फैली 12 सौ एकड़ जमीन से महारानी उषादेवी होलकर ट्रस्ट का दावा खारिज कर दिया गया है. यानी यह 5000 करोड़ कीमत की जमीन अब सरकार की हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का व्यापक असर होगा और 2010 से रुका एयरपोर्ट का विस्तार होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 363 के मुताबिक जिन रजवाड़ो का संधि के तहत विलय हुआ था. उनकी संपत्ति विवाद की सुनवाई का हक़ सुप्रीम कोर्ट सहित किसी भी अदालत को नही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसी सम्पति को निजी सम्पति माना जायेगा जिसको विलय के समय भारत सरकार ने मान्यता दी हो. बाद में किसी भी संपत्ति को निजी संपत्ति नहीं माना जायेगा. इतना ही नहीं राजस्व कानून भी इस मामले में लागू नहीं होता. दरअसल मध्य प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले जो सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी थी. हाई कोर्ट ने महारानी के हक़ में फ़ैसला सुनाया था.
50 साल से चल रहा था विवाद
उषाराजे ट्रस्ट जिस 12 सौ एकड़ की जमीन का केस हारा है, उसकी कीमत जानकारों के मुताबिक बाजार भाव से करीब पांच हजार करोड़ रुपए है. जमीन हाथ में आने के बाद शासन, प्रशासन की बांछें खिल गई हैं. सरकार के पास प्राइम लोकेशन की ऐसी जमीनें वापस आ गई हैं जिन पर महत्वपूर्ण योजनाएं लाई जा सकती हैं या फिर निवेशकों को लुभाया जा सकता है. गांधी नगर, छोटा-बड़ा बांगड़दा की जमीनें इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं. सरकार को जमीन मिलने का सबसे पहला फायदा एयरपोर्ट प्रबंधन को मिलेगा. 25 एकड़ जमीन एयरपोर्ट प्रबंधन ने सरकार से पार्किंग के लिए मांगी थी. इंदौर के आसपास भी गांवों में फैली जमीन पर सरकार योजनाएं बना सकती है. जमीन का विवाद 50 साल से कोर्ट में चल रहा था.