श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों को लेकर सियासी जंग अभी खत्म नहीं हुई थी तभी एक और मामला सामने आ गया है. इस बार मामला पशु अधिकारों को लेकर है. दरअसल यह मामला हिमालयन रेंज के दुर्लभ और संरक्षित वन्य प्राणी तिब्बतन ऐन्टलोप (चीरू) के गैरकानूनी शिकार करने से जुड़ा हुआ है. इसे मारना भारत सहित पूरी दुनिया में बैन है.
दरअसल, तिब्बत के पठार और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में पाए जाने वाले चिरू हमेशा माइनस 40 डिग्री सेल्सियस के क्षेत्र में ही रहते हैं. जानकारी के मुताबिक एक शॉल बनाने के लिए 4 से 5 चीरू का शिकार करना पड़ता है. इस पर राज्यसभा में कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी की अगुवाई में बनी विज्ञान व प्रौद्योगिकी और पर्यावरण और फॉरेस्ट मामलों की समिति ने बीते दिनों सरकार से सिफारिश की है.
संसदीय समिति की सिफारिश क्या कहती है-
संसदीय समिति के रिपोर्ट के मुताबिक, ‘शॉल बनाने वाले कामगारों का कहना है कि वो हर शहतूश शॉल के लिए इसे मार नहीं सकते हैं, अगर ऐसा करेंगे तो आगे शॉल कैसे बनाएंगे.’ साथ ही रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि चीन और मंगोलिया भेड़ की इस प्रजाति को बढ़ावा दे रही है. बता दें कि मंगोलिया को अच्छी क्वालिटी के ऊन के लिए भी जाना जाता है.’
इसके अलावा यह भी कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के तराई क्षेत्र में रहने वाले लोगों को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए सीमित संसाधनों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. वहां कि स्थानीय परिस्थिति को देखते हुए समिति शहतूश के मारने पर से प्रतिबंध हटाने की सिफारिश करती है.’
वहीं पिपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (पेटा) के मुताबिक शहतूश शॉल बनाने के लिए जरूरी ऊन को पाने के लिए तिब्बती चिरु को मारना जरूरी होता है. इसलिए इसे संरक्षित वन्य प्रणियों की श्रेणी में रखा गया है. इतना ही नहीं चिकारा को पालना और इससे तैयार शॉल को बेचना या रखना दोनों ही भारत में साल 1975 से बैन है. एक शहतूश शॉल बनाने के लिए 4-5 एन्टलोप का शिकार करना पड़ता है.
इस क्षेत्र में काम रहे एनजीओ नूतन संकल्प संस्था के अध्यक्ष प्रशांत ने मीडिया से बातचीत में बताया कि शहतूश शॉल का व्यापार भले ही गैरकानूनी कर दिया गया हो लेकिन यह आज भी जारी है.
उनका दावा है कि कई अधिकारी भी इसमें शामिल हैं जिनको पकड़ना मुश्किल है अगर कानून की जद में कोई आ भी जाता है तो मिली भगत से आसानी से छूट जाता है.
आपको बता दें कि पिछले साल नवंबर में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने शहतूश के व्यापार से संबंधित 16 साल पुराने एक मामले पर फैसला सुनाते हुए दोषी को वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम के तहत 1 लाख रुपए का जुर्माना भरने के लिए कहा था. वहीं साल 1998 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम ने हॉज खास इलाके से 46 शहतूश शॉल के साथ कई लोगों को गिरफ्तार किया था.