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इस शहर में छात्र ही बने गुरुजी, गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपनाया ये खास तरीका

शहर में एक ऐसा स्कूल चल रहा है, जहां के छात्र पढ़ाई में असमर्थ बच्चों को ढूंढ कर उन्हें खुद ही पढ़ाते हैं. ये बात केवल यहीं खत्म नहीं होती, वह बच्चों को खुद पढ़ाते हैं साथ ही वह अपनी पुरानी किताबें भी उन्हें पढ़ने के लिए देते हैं.

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  • May 2, 2017 4:37 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
बिहारशरीफ : शहर में एक ऐसा स्कूल चल रहा है, जहां के छात्र पढ़ाई में असमर्थ बच्चों को ढूंढ कर उन्हें खुद ही पढ़ाते हैं. ये बात केवल यहीं खत्म नहीं होती, वह बच्चों को खुद पढ़ाते हैं साथ ही वह अपनी पुरानी किताबें भी उन्हें पढ़ने के लिए देते हैं.
 
कैसे हुई इस नेक कार्य की शुरुआत
 
आज से एक साल पूर्व , संत जोसेफ स्कूल की दो छात्राओं जब घर लौट रही थीं तो उनकी नजर सड़क के किनारे खेलकूद कर रहे बच्चों पर पढ़ी जो खेलने में अपना समय बर्बाद कर रहे थे. बच्चों के अभिभावक गरीबी के चलते बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ थे, लेकिन जब छात्राओं ने उन्हें समझाया तो वह बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हो गए.
 
स्कूल के प्राचार्य बाबू थॉमस छात्राओं के इस नेक काम से प्रभावित हुए और छुट्‌टी के पश्चात स्कूल में ही पढ़ाने की अनुमति दे दी. शुरुआत में तो स्कूल में 30 बच्चे आए लेकिन आज ये आंकड़ा 350 पहुंच गया है.
 
स्कूल की चांदनी और प्रियांशी के मन में सबसे पहले यह विचार आया और फिर उन्होंने अपने साथियों के साथ चर्चा कर बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया. बच्चों के हौसले काफी बुलंद हैं, बनौलिया के सुमनी का कहना है कि वह आगे तक पढ़ाई करेगी और वहीं शकुनत कला की सीख का सपना शिक्षक बन गरीब बच्चों को पढ़ाना है. बनौलिया की रूबी डॉक्टर बनना चाहती है और चैनपुरा की नृजला का सपना पुलिस की नौकरी है.
 
छात्रों के हौसले को देखते हुए रोटरी क्लब ने इन्हें बच्चों की शाखा इंट्रैक्ट क्लब से जोड़ दिया है, बता दें की चांदनी दिव्यांग है लेकिन इसके बावजूद भी वह घूम-घूम कर बच्चों को पढ़ाई के लिए तैयार करती है.

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