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त्रिवेंद्र रावत ने उस ‘मनहूस’ बंगले में गृह प्रवेश किया है जो सत्ता निगल जाता है

देहरादून: उत्तराखंड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आज पूरे विधी-विधान के साथ उसी बंगले में प्रवेश कर लिया जिसको लेकर 2007 से यही कहा जा रहा है जो भी इस बंगले में रहा, वो सत्ता से बेदखल हो गया.
देहरादून के बीजापुर से कुछ ही दूरी पर सीएम आवास है लेकिन वो भी पिछले कई सालों से खाली पड़ा हुआ था. इस बार भी सब की नजर इस बात पर थी कि क्या सीएम त्रिवेंद्र आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री के आवास पर रहेंगे या नहीं क्योंकि इस आवास से जुडी है कई मनहूस कहानी.
सीएम बंगले से जुड़े बदनामी के किस्से
दरअसल सीएम बंगला जब से बना और जिस मुख्यमंत्री ने भी इसमें अपना आशियाना बनाया उस मुख्यमंत्री की कुर्सी सलामत नही रही.
कुछ यूं शुरू हुआ सीएम बंगले की बदनामी का सिलसिला
सीएम आवास की बदनामी का सिलसिला सूबे में कांग्रेस की तिवारी सरकार से शुरू हुआ. बंगला अभी पूरा बना भी नही था की बंगले को अपना निवास बनाने से पहले ही तिवारी अपनी 5 साल की सियासी उलझनों वाली सरकार पूरी कर चुके थे और दोबारा सत्ता में नही लौटे.
तिवारी सरकार के बाद सूबे में आई बीजेपी की सरकार सीएम बने बी सी खण्डूरी, अधूरे बंगले को खंडूरी ने दिलोजान से तैयार कराया. लेकिन खंडूरी जब इस बंगले में रहने के लिये पहुंचे तो लगभग 2 ढाई साल में ही उनकी कुर्सी खिसक कर डॉ रमेश पोखियाल निशंक के हाथो में आ गयी.
डॉ निशंक जब सीएम बने तो वह भी इस बंगले से अपनी सत्ता चलाने लगे लेकिन सरकार पूरी होने से लगभग 6 महीने पहले ही निशंक भी बदनामी के दाग लेकर सीएम कुर्सी से उतार दिए गए.
फिर से सत्ता बीसी खण्डूरी के हाथ आ गयी पर जब चुनाव आये तो सूबे में खंडूरी सरकार नही बल्कि कांग्रेस की सरकार आ गयी और कुर्सी मिली विजय बहुगुणा को लेकिन 2 साल में बदनाम सरकार का सर पर तमगा लिए विजय बहुगुणा भी सत्ता से बेआबरू होकर हटाये गए.
हरीश रावत जब मुख्यमंत्री बने तो सीएम आवास के बारे में फैल रहे भर्म को नजरअंदाज नही कर सके. लिहाजा रावत ने अपना ठिकाना बीजापुर को ही मुफीद समझा पर रावत को क्या पता था की बीजापुर आवास पुराने सीएम बंगले से भी ज्यादा मनहूस निकलेगा. इसी आवास में रहते हुए रावत की सीएम कुर्सी तो गई ही साथ में इल्जामो की कालिख लगी वो अलग और इन्ही रुसवाइयों के साथ सूबे में राष्ट्रपति शाशन भी लग गया जो उत्तराखण्ड की सियासत में पहली बार हुआ है.
बात इतने पर भी नहीं रुकी हरीश रावत ने इसी बंगले से चुनावी राणिनित तैयार कर चुनाव लड़ा और दोनों जगहों से हरीश रावत तो हारे ही साथ ही कांग्रेस की भी बुरी तरह से हार हो गई.
वास्तु के जानकार भी मानते है कि इस आवास में वास्तु के हिसाब से कुछ भी ठीक नहीं है और पहले भी इस आवास के बारे में जोतिष और धर्मगुरु अपनी अपनी राय देते रहे है.
इन घटनाक्रम के साथ साथ ये भर्म भी पुख्ता होता गया की यह आलीशान सीएम आवास मुख्यमंत्रियो की कुर्सी निगल जाता है.
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