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रिक्शा चालक ने लिखी किताब, हाथों हाथ बिक गई चार सौ कॉपियां

अमृतसर : पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से उड़ान होती है, मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है. ऐसा ही कुछ हौंसला है अमृतसर के छेहरटा के रहने वाले राजबीर सिंह में. राजबीर सिंह वैसे तो अमृतसर में रिक्क्षा चला कर अपने परिवार का पेट पालते हैं लकिन रिक्क्षा चलाने के साथ राजबीर को किताबे लिखने का शौक है और एक महीने में उसकी लिखी किताब की 400 कॉपी बिक चुकी हैं.
राजबीर के मुताबिक अभी उसकी मंजिल बहुत दूर है और उसे अपनी मंजिल हासिल करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. राजबीर सिंह सारा दिन रिक्क्षा चला कर अमृतसर आए टूरिस्ट को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का काम करते हैं लकिन उन्हें रिक्क्षा चलाते समय अपनी मंजिल की तलाश रहती है राजबीर की मंजिल क्या होगी इसके बारे में आप भी सोच रहे होंगे.
आइए हम आपको बताते हैं राजबीर से जुड़ी कुछ अहम बातें
राजबीर ने अपने रिकशे के पीछे एक बैनर लटका रखा है जिसपर लिखा है की मेरी किताब पड़ो जिसका शीर्षक है “रिकशे पर जिंदगी” ये किताब राजबीर के रिकशे पर बैठने वाले उन टूरिस्ट पर आधारित है जो उनके साथ थोड़ा सा जिंदगी का सफर तय करते हैं, राजबीर रिक्क्षा चलाते चलाते उन लोगों की राय भी जानते हैं और जहां भी टाइम मिले उन टूरिस्ट पर लेख लिखते हैं.
राजबीर सिंह ने 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, उन्होंने अपनी इस पुस्तक में लोगों की मानसिकता का जिक्र किया है की आज के समय में लोगों के व्यवहार में क्या बदलाव आया है. राजबीर का कहना है की उसके शीर्षक के 14 भाग छप चुके हैं साथ ही उन्होंने वातावरण और नशे पर भी कई लेख लिखे हैं. उनका कहना है की रिकशे में उन्होंने एक गुलक रखी है जिसमें वह अपनी कमाई का 10वां हिस्सा डालते हैं जिसका इस्तमाल वह जरूरतमंदों के लिए करते हैं.
उनका कहना है की उनकी किताब को खालसा कॉलेज की लाइब्रेरी और पंजाबी यूनिवर्सटी पटियाला की लाइब्रेरी में रखा गया है और उनके ग्राहक जब उनकी किताब पड़ते है तो वह स्पेशल उन्हें फोन करके किताब के बारे में बताते हैं आज वह जहां भी पहुंचे अपने दम पर पहुंचे हैं. उन्हें इसमें किसी भी तरह की कोई भी मदद नहीं मिली और उनके पाठक उन्हें किताब को हिंदी और इंग्लिश में छापने के लिए अनुरोध कर रहे हैं क्योंकि वह किताब एक मात्र भाषा पंजाबी में छापते हैं.
राजबीर का कहना है की उनके पास पैसे की कमी है इसलिए वह इंग्लिश और हिंदी में छपवा नहीं सकते उनका कहना है की पढ़ाई उन्होंने महज मेट्रिक तक की है लकिन किस्मत और वक्त ने उन्हें अच्छी पढ़ाई करवाई और वह आज अपनी किताब लिख रहे हैं. वही राजबीर के पिता भगवान सिंह का कहना है की वह खुद भी रिक्क्षा चलाते हैं और उन्होंने अपने बेटे के बारे में बात करते हुए कहा की जब भी विदेश से लोग आकर उनसे राजबीर के बारे में पूछते हैं तो उन्हें अपने बेटे की उपलब्धि देखकर काफी अच्छा लगता है.
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