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बिहार का एक ऐसा गांव जहां बनने से पहले ही टूट जाते हैं शादी के रिश्ते

भोजपुर : अभी तक आपने आपसी तकरार से शादी टूटते देखा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार के भोजपुर में भी एक ऐसा गांव हैं, जहां शादी के लिए आए रिश्ते बनने के पहले ही टूट जाते हैं.
जी हां, चौंकिये मत ये हकीकत है और वजह है सिर्फ इन गांवों में आवागमन के लिए रास्ते का न होना. सूबे के मुखिया नितीश कुमार अपनी सात निश्चय योजना के तहत हर गांव में पक्की सड़क व मुख्य मार्ग से जोड़ने की बात कर वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ इस गांव के लोग आज भी आदम युग में जीने को मजबूर हैं.
मुखिया को टाइम मैग्जीन में जगह
इस गांव में आवागमन के रास्ते नहीं होने से शादी विवाह जैसे रिश्ते बनने के पहले ही टूट जाते हैं. आश्चर्य की बात है कि यह एक ऐसे राज्य की बात है जहां के मुखिया को सुशासन और विकास के लिए टाइम मैगजीन ने अपने कवर पेज पर जगह दी थी. लेकिन, इनके राज्य के गांव की सच्चाई कुछ और बयां कर रही है, पेश है एक रिपोर्ट:
आरा मुख्यालय से महज 20 किमी. की दूरी पर आरा-सासाराम मुख्य मार्ग पर अवस्थित गडहनी प्रखंड का ये है तिन्घरवा टोला गांव. गडहनी वार्ड संख्या 1 के अंतर्गत आने वाला यह गांव अब तक, गांव में आने-जाने वालों के लिए रास्ते की बाट जोह रहा है. मुख्य सड़क से लगभग 3 किमी. की दूरी पर स्थित इस तिन्घरवा टोला में जाने के लिए बनास नदी पार कर जाना पड़ता है.
70 साल बाद भी नहीं बनाया पुल
आजादी के 70 वर्ष बाद भी इस गांव के लोगों के लिए सरकार ने पूल का निर्माण नहीं कराया और न ही आवागमन के लिए कोई मुख्य मार्ग बनाया. नतीजतन आज भी लोग खेत के आरी और नदी के रास्ते ही गांव में जाने को मजबूर हैं. बनास नदी में साल भर पानी लगा रहता है.
गर्मियों में पानी नदी में कम रहता है जिसे पार करना तो आसान होता है लेकिन परेशानी तब बढ़ जाती है जब बरसात के दिनों में नदी उफान पर रहती है. खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. नदी में तैरकर ही गांव से आने-जाने का एक रास्ता बच जाता है जिसे पार करना जोखिम भरा होता है. मुख्य मार्ग से जोड़ने के लिए एक दूसरा वैकल्पिक रास्ता भी है जिसे गांव वालों ने तैयार किया है लेकिन वो भी खतरे से खाली नहीं है, जिसे तस्वीरें साफ बयान करती हैं.
शादी के लिए दूर से नहीं आते रिश्ते
जरा गौर से देखिये बिजली के खम्बे वाले इस रास्ते को. जिस रास्ते से महिलाएं सर पर गठरी रखकर तो बच्चे स्कूल में पढ़ने के लिए जाते हैं. कई बार इस बिजली के खम्भे वाले रास्ते से दुर्घटनाएं भी हुई हैं. इस वैकल्पिक रास्ते से ग्रामीणों को सड़क पर आने के लिए 8 किमी. का सफर तय करना पड़ता है. इन रास्तों से केवल पैदल ही चलना मुमकीन है.
मजेदार बात ये है कि इस जोखिम भरे पूल से तीनघरवा टोला, देवधी, हरदियां, सियार, बढघरा, रतनपुर जैसे आधे दर्जन गांव जुड़े हुए हैं. इन गांव में शादी-विवाह में लोग दूर से नहीं आते हैं. गांव में अपनी बेटियों के लिए रिश्ते तलाशने वाले जब इन गांव में पहुंचते हैं तो अच्छा लड़का देखने के बाद भी रिश्ते तय नहीं हो पातें हैं. आवागमन की ये बाधा गांव में कई लोगों के रिश्ते तोड़ चुकी है.
आने-जाने का रास्ता सुगम न होने से लड़की वाले अपनी बेटियां इस गांव में नहीं देना चाहते. तिन्घरवा टोला में तो बिजली भी महज 2 महीने पूर्व आई है, जिसे ग्रामीणों ने खुद से चंदा कर लगाया है.
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