गुवाहाटी: असम के गुवाहाटी में एक ऐसा मंदिर भी है जहां योनि की पूजा होती है. यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है और यहां तांत्रिकों व अघोरियों का मेला लगता है.
कामाख्या मंदिर गुवाहाटी का मुख्य धार्मिक स्थल है. ये मंदिर गुवाहाटी के अंतर्गत आने वाली नीलाचल पहाड़ियों में स्थित है जो रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर की दूरी पर है. ये मन्दिर एक तांत्रिक देवी को समर्पित है. मुख्य देवी कामाख्या के अलावा इस मंदिर में देवी काली के 10 रूप जैसे धूमावती, मतंगी, बगोला, तारा, कमला, भैरवी, चिनमासा, भुवनेश्वरी और त्रिपुरा सुंदरी भी देखने को मिलेंगे.
पुराना शक्तिपीठ
दरअसल, कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है. यह सबसे पुराना शक्तिपीठ है. लोगों के मान्यता के मुताबिक जब सती के पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उस के पति शंकर को यज्ञ में अपमानित किया और भगवान शिव जी को अपशब्द कहे तो सती ने दुःखी हो कर आत्म-दहन कर लिया.
शंकर ने सती कि मृत-देह को उठा कर संहारक नृत्य किया. तब सती के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग जगह पर गिरे जो 51 शक्ति पीठ कहलाए. कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा. उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया.
विशेष पूजा
मां कामाख्या देवी की इस मंदिर में रोजाना पूजा के अलावा साल में कई बार कुछ विशेष पूजा का आयोजन भी होता है. इनमें पोहन बिया, दुर्गाडियूल, वसंती पूजा, मडानडियूल, अम्बूवाकी और मनसा दुर्गा पूजा प्रमुख हैं. चेत्र महीने में भगवान कामदेव और कामेश्वरा के लिए मडानडियूल पूजा की विशेष पूजा की जाती है.
काम के देव काम देव ने अपना पौरुष खो दिया जिन्हें बाद में देवी शक्ति के जननांगों और गर्भ से ही इस श्राप से मुक्ति मिली. तब से ही यहां कामाख्या देवी की मूर्ति को रखा गया और उसकी पूजा शुरू हुई. कुछ लोगों का ये भी मानना है की ये वही स्थान हैं जहां देवी सती और भगवान शिव के बीच प्रेम की शुरुआत हुई. संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है जिसके बाद इस मंदिर का नाम कामाख्या देवी रखा गया.