खून बोलता है- ‘भगत सिंह को फांसी ही चाहिए थी’

‘भगत सिंह खुद नहीं चाहते थे कि फांसी रुके, वो चाहते थे बलिदान, एक भगत सिंह जाएं तो लाखों भगत सिंह आएं’ ये खुलासा किया है भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह ने.

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खून बोलता है- ‘भगत सिंह को फांसी ही चाहिए थी’

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  • March 19, 2017 1:18 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली : ‘भगत सिंह खुद नहीं चाहते थे कि फांसी रुके, वो चाहते थे बलिदान, एक भगत सिंह जाएं तो लाखों भगत सिंह आएं’ ये खुलासा किया है भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह ने. मौका था महशूर उद्योगपति संजय डालमिया की बर्थडे पार्टी का. अपने जन्मदिन को खास बनाने के लिए संजय डालमिया ने देश के महान शहीदों के घरवालों को सम्मान किया. 
 
महाराणा प्रताप से से लेकर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्लिम जैसे शहीदों की आज की पीढ़ियों सम्मानित किया गया. शहीदों के सजदे में रखी गई इस शाम को नाम दिया गया, भारत मां गौरव संध्या.
 
भगत सिंह खुद चाहते थे फांसी
इस मौके पर inkhabar की टीम ने वहां मौजूद क्रांतिकारियों के परिवारवालों से खुलकर बात की, जिसमें हमें ये जानने का मौका मिला कि आखिर क्यों भगत सिंह ने किसी भी तरह की माफी से इन्कार कर दिया था और वो क्यों फांसी पर चढ़ना चाहते थे. 
 
शहीद भगत सिंह के भतीजे से जब हमने पूछा कि क्या भगत सिंह को फांसी से बचाया जा सकता था? क्या वो फांसी से बच सकते थे, तो उन्होंने बताया कि ‘इस बारे में बहुत विवाद है लेकिन भगत सिंह खुद नहीं चाहते थे कि उन्हे फांसी हो. वो चाहते थे कि वो बलिदान दें और उस समय दें जब देश में भावनाएं उफान पर हों ताकि एक भगत सिंह जाएं तो लाखो भगत सिंह आएं. जब कोई भगत सिंह का फांसी रुकावाने की पहल करता तो वो सख्ती से उसे मना कर देते. 
 
शहीद राजगुरु के परिवार ने क्या कहा
वहीं, जब ये सवाल हमने शहीद राजगुरु के पोते सत्यशील राजगुरु से पूछा तो उनका भी यही कहना था कि राजगुरु को फांसी के अलावा कुछ नहीं चाहिए था और वो फांसी के फंदे पर चढ़ने के लिए बेसब्र थे.
 
इस मौके पर डालमिया कंपनी समूह के अध्यक्ष संजय डालमिया ने कहा कि ‘भारत के एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमारा यह दायित्व बनता है कि हम राष्ट्र में जो भी हो सके वो योगदान दे, फिर भले ही वो क्यूं ना छोटे से छोटा हो.
 
झलका सम्मान न मिलने का दर्द
inkhabar की टीम से बातचीत में क्रांतिकारियों की शहादत को सही सम्मान ना मिलने का दर्द भी झलका. लोगों का कहना था कि ना ही सरकार ने और ना ही समाज से क्रांतिकारियों को वो दर्जा मिला जिसके वो हकदार थे. 
 
उन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी लेकिन लगता है उन्हें देश भूल गया. ऐसे में जब पीएम मोदी ने आजादी 75 साल पर न्यू इंडिया विजन रखा तो हमें ओल्ड इंडिया के उस विजन को भी याद रखना चाहिए जो आजादी के कई साल पहले हमारे क्रांतिकारियों ने देख लिया था.

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