बिना कांग्रेस-बीजेपी के भी अरसे तक इस बाप-बेटी ने संभाला गोवा को, इनके जाते ही शुरू हुआ अस्थिर सरकारों का दौर

अभी बहुतों को लग रहा है कि गोवा के मामले में कांग्रेस चूक गई और बीजेपी ने खेल कर दिया, यहां तक कि कांग्रेस कि विधायक भी दिल्ली की लीडरशिप पर उंगली उठा रहे हैं कि उन्होंने समय रहते ठीक कदम नहीं उठाया और सरकार नहीं बन पाई.

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बिना कांग्रेस-बीजेपी के भी अरसे तक इस बाप-बेटी ने संभाला गोवा को, इनके जाते ही शुरू हुआ अस्थिर सरकारों का दौर

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  • March 14, 2017 2:15 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली: अभी बहुतों को लग रहा है कि गोवा के मामले में कांग्रेस चूक गई और बीजेपी ने खेल कर दिया, यहां तक कि कांग्रेस कि विधायक भी दिल्ली की लीडरशिप पर उंगली उठा रहे हैं कि उन्होंने समय रहते ठीक कदम नहीं उठाया और सरकार नहीं बन पाई.
 
गोवा के राजनीतिक इतिहास में जाएंगे तो पता चलेगा कि गोवा की 1961 में आजादी के बाद से ही ये खेल शुरू हो गए थे. बावजूद इसके दो दशक तक एक बाप बेटी ने शुरूआत के दो दशकों तक गोवा ने संभाला, वो भी उस दौर में जब ना जनसंघ था ना बीजेपी और ना ही कांग्रेस. उनके जाते ही 1990 से 2005 के 15 सालों में गोवा ने 14 सरकारें देखीं, और 1985 से पहले तो कांग्रेस सत्ता में आई ही नहीं. आई भी तो दूसरी पार्टी का कांग्रेस में विलय करवाकर. ये बाप बेटी थे गोवा के पहले मुख्यमंत्री दयानंद बंडोडकर और उनकी बेटी शकुंतला काकोडकर.
 
1961 में इंडियन आर्मी ने ऑपरेशन विजय के जरिए गोवा को पुर्तगालियों के चंगुल से मुक्त करवाया और 1963 में इसे केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के बाद पहले विधानसभा चुनाव करवाए गए. तब गोवा में दमन और दीव भी शामिल होते थे और कुल तीस सीटें थीं. महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के दयानंद बंडोडकर को मुख्यमंत्री चुना गया, जबकि वो विधायक भी नहीं थे, बाद मे चुने गए. एक खदान के मालिक थे दयानंद, उनको एक्ट्रेस लीना चंद्रावरकर के श्वसुर के तौर पर भी जाना है.
 
उनका बेटा सिद्धार्थ लीना का पहला पति था, लेकिन 26 साल की उम्र में ही उसकी मौत हो गई. दयानंद चाहते थे कि गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए. 1966 में जब इंदिरा गांधी पीएम बनीं तो इंदिरा ने उनके सामने दो विकल्प रखे, या तो गोवा को ऐसे ही केन्द्र शासित प्रदेश रखा जाए और दूसरा गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए और दमन एंव दीव को गुजरात में मिला दिया जाए. संसद में भी ये प्रस्ताव रखा गया, लेकिन गोवा में जो जनमत संग्रह हुआ, उसके मुताबिक लोग किसी भी स्टेट में मिलने को तैयार नहीं थे.
 
 
कांग्रेस ने यहीं खेल कर दिया था, जनमत संग्रह में हारते ही गोवा में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था. कुल 124 दिन तक राष्ट्रपति शासन रहा और फिर से 1967 में चुनाव हुए तो दयानंद की पार्टी फिर से सत्ता में आ गई, तीस में से सोलह सीटें लाकर. कांग्रेस पार्टी का कोई अस्तित्व वहां उस वक्त तक नहीं था, 12 सीटें यूनाइटेड गोवांस पार्टी को मिली थी. उसके बाद 1972 में फिर से चुनाव हुए, अब तक कांग्रेस राज्य में अपनी पार्टी की जड़ें जमाने में लग गई थी, लेकिन कांग्रेस का एक ही एमएलए चुनकर आ पाया.
 
सीएम रहते ही दयानंद की मौत
दयानंद की पार्टी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी को 18 और यूनाइटेड गोवांस को 10 सीटें ही मिलीं. हालांकि 1973 में सीएम रहते ही दयानंद की मौत हो गई, तो उनकी बेटी शशिकला काकोडकर को सीएम बनाया गया, जो सरकार में पहले से ही मंत्री थीं. वो गोवा, दमन-दीव की अब तक अकेली महिला मुख्यमंत्री हैं. शायद ये दोनों बाप बेटी ही थे, जिनके चलते गोवा में आज तमाम संस्थाएं खड़ी हुईं, इधर 1977 में फिर चुनाव हुए.
 
इस बार कांग्रेस मजबूत थी, शायद सरकार भी बना लेती, लेकिन शशिकला की पार्टी तीस में से पंद्रह सीटें लेकर आई थीं और कांग्रेस दस. 2 निर्दलीय थे और 3 सीटें जनता पार्टी के पास थीं. कांग्रेस के उभार की वजहें भी थीं, शशिकला से उसके कुछ साथी नाराज भी थे, कांग्रेस ने प्रताप सिंह राणे पर डोरे डाले और कांग्रेस में शामिल कर लिया. इधर काकोडकर ने गोवा को महाराष्ट्र में मिलाने की अपने पिता की मांग पर रुख बदल लिया, लेकिन स्कूलों में कोंकणी के साथ मराठी अनिवार्य कर दी, साथ ही इंदिरा गांधी और इमरजेंसी का विरोध किया, साथ ही गोवा को एक पूर्ण राज्य बनाने की मांग भी रख दी.
 
शशिकला ने फिर बनाई सरकार
1977 में 2 निर्दलीयों के साथ मिलकर शशिकला ने फिर से सरकार बनाई. लेकिन इस बार मामला मुश्किल था, इमरजेंसी पर उसके बयानों से नाराज कांग्रेस लगातार सरकार बनाने की जुगत में लगी थी, वो शशिकला को सबक सिखाना चाहते थे. धीरे धीरे कांग्रेस ने शशिकला के दो नाराज विधायकों दयानंद नार्वेकर और दिलखुश देसाई को सरकार के खिलाफ वोटिंग पर राजी कर लिया. कई बार ऐसी स्थिति आई कि बिलों पर वोटिंग के दौरान पक्ष और विपक्ष में 14-14 वोट पड़ते थे औऱ तब विधानसभा स्पीकर अपने वोट से सरकार को बचाते थे.
 
एक दिन शशिकला के लॉ मिनिस्टर को भी कांग्रेस ने अपने पाले में ले लिया, यहां तक स्पीकर भी उनके पाले में आ गया. ऐसे में शशिकला के पास केवल 13 एमएलए रह गए. कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश किया, तब तक केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार आ चुकी थी. बहुमत साबित करने के लिए 13 अप्रैल 1979 का दिन रखा गया, लेकिन चूंकि स्पीकर अब खिलाफ था, तो शशिकला के विधायकों ने स्पीकर को सीट पर नहीं बैठने दिया, काफी बवाल हुआ, यहां तक कि गांधीजी की मूर्ति को भी गिरा दिया गया.
 
अल्पमत का ऐलान
स्पीकर ने कौने में खड़े होकर ही शशिकला के अल्पमत का ऐलान कर दिया, शशिकला ने कहा कुर्सी पर नहीं बैठे इसलिए फैसला मान्य नहीं होगा. अगले दिन शशिकला दिल्ली निकल गई, पीएम मोरारजी देसाई और राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से मिली. शशिकला को इस्तीफा तो देना पडा, लेकिन फायदा यही हुआ कि कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका देने की बजाय गोवा में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
 
1980 के चुनावों से पहले गोवा में भी केन्द्र की तरह ही दो कांग्रेस दो पार्टियों में बंट गई थी, कांग्रेस (उर्स) और इंदिरा कांग्रेस. पहली बार गोवा के चुनाव प्रचार के दौरान ही इंदिरा ने इमरजेंसी के लिए माफी मांगी थी, फिर भी इंदिरा कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिली, कांग्रेस (उर्स) से टाईअप के बाद भी नहीं जीत पाए, लेकिन कांग्रेस उर्स 20 सीटें लेकर बहुमत पा गई और शशिकला की पार्टी 7 सीटों पर ही रह गई, खुद वो अपनी सीट पर हार गई. प्रताप सिंह राणे को कांग्रेस (उर्स) से मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन इंदिरा के पीएम बनते ही कांग्रेस फिर एक्टिव हो गई. उसी साल फरवरी में कांग्रेस (उर्स) का विलय इंदिरा कांग्रेस में हो गया और इस तरह से पूरी की पूरी पार्टी का विलय करवाकर कांग्रेस की पहली सरकार गोवा में बनी.
 
मेनस्ट्रीम पॉलटिक्स
कांग्रेस यहीं रुकने वाली नहीं थी, शशिकला के हारते ही महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी एक तरह से नेतृत्व विहीन थी. कांग्रेस ने उसके पांच विधायकों को तोड़ लिया और कांग्रेस में ही शामिल करा दिया. शशिकला को लग गया कि अब वो मेनस्ट्रीम पॉलटिक्स से दूर होने जा रही है और उसकी पार्टी का कोई भविष्य नहीं है, शशिकला ने भी अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल होने का ऐलान कर दिया. लेकिन उसकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को ये रास नहीं आया.
 
शशिकला पार्टी का विलय कांग्रेस में करना चाहती थी, लेकिन बाकी दो विधायकों ने साफ मना कर दिया. शशिकला को भी कांग्रेस में मनमाफिक जगह नहीं मिली, उसने नई पार्टी खड़ी कर दी, पार्टी का नाम पिता के नाम पर रखा भाईसाहेब बांडोडकर गोमांतक पार्टी लेकिन 1984 के चुनाव में उसकी बुरी तरह हार हुई, खुद शशिकला दो जगहों से लडी और हार गई और वापस महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी में अपनी पार्टी के विलय के साथ शामिल हो गई. दोबारा से बहुमत के साथ प्रताप सिंह राणे की सरकार आ गई.
 
किस्मत ने छोड़ा साथ
1989 में गोवा विधानसभा के बतौर पूर्ण राज्य 40 सीटों पर पहली बार चुनाव हुए. महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी ने अपनी ताकत फिर से जुटा ली, लेकिन किस्मत साथ छोड़ गई. कुल 18 सीटें मिलीं पार्टी को, जबकि कांग्रेस के पास 20 विधायक थे और 2 निर्दलीय थे. कांग्रेस से निर्दलीयों के साथ सरकार तो बना ली, लेकिन ये झांसा देकर कि जल्द ही दोबारा मंत्रिमंडल विस्तार होगा और कई लोग मंत्री बनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कांग्रेस के सात विधायक और 2 निर्दलीयों ने मिलकर गोवा प्यूपिल्स पार्टी बनाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया एमजीपी के समर्थन से. उस वक्त केन्द्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नींडीज का भी रोल रहा और पहले 17 दिन के लिए चर्चिल अनेमोया को अंतरिम मुख्य मंत्री बनाया गया और फिर लुइस प्रोटो बारबोसा सीएम बने, 244 दिन तक रहे.
 
शशिकला भी मंत्री बनीं एजुकेशन, फिशरीज और ट्रांसपोर्ट मंत्रालय उनको मिले, लेकिन 18 विधायकों के होने के बावजूद वो वो चीफ मिनिस्टर नहीं बन पाई थीं, जबकि वर्तमान चीफ मिनिस्टर के अपने खुद के कुल सात ही विधायक थे. शशिकला ने साल पूरा होने से पहले अपनी पार्टी के मंत्रियों के साथ मिलकर सरकार से रिजाइन कर दिया और सीएम ने विश्वासमत से पहले ही इस्तीफा दे दिया. राज्य में फिर से राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
 
फिर कांग्रेस से जोड़तोड़ करके अपनी सरकार बना ली और शशिकला का कैरियर लगातार पतन की तरफ चला गया. 1994 में पहली बार बीजेपी चार विधायक लेकर आई, कांग्रेस के पास बहुमत नहीं था, लेकिन उसने निर्दलीयों के साथ सरकार बना ली. इधर एजुकेशन मिनिस्टर रहने के दौरान शशिकला ने चर्च के 130 स्कूलों में भी अंग्रेजी की बजाय कोंकणी लागू कर दी थी. जिसके चलते इस बार उसके बस 12 विधायक आए. 1999 और 2002 के चुनावों में शशिकला हार गई और कांग्रेस बीजेपी लगातार सत्ता बनाने गिराने के खेल में उलझते गए. अगले 15 सालों में गोवा में 14 सरकारें बनीं.
 
लेकिन शशिकला ने दो बार हारने के बाद राजनीति से सन्यास ले लिया और गोवा में फुटबॉल और कला बढ़ाने के लिए योगदान देती रहीं. इंगलिश को लेकर उनका विरोध मरते दम तक जारी रहा और मराठी और कोंकणी के लिए संघर्ष करती रही. पिछले साल लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. गोवा में आर्ट, स्पोर्ट्स, एजुकेशन और एडमिनिस्ट्रेशन से जुडी आज सैकड़ों संस्थाएं काम कर रही हैं, जिनको खड़ा करने के लिए लिए इन दोनों बाप-बेटी को ही श्रेय जाता है, जैसे कैंसर सोसायटी, गोवा डेवलपमेंट इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन, कला अकेडमी, गोवा स्पोर्ट्स काउंसिल, गोवा फुटवॉल एसोसिएशन, गोवा एजुकेशन बोर्ड आदि. हालांकि शशिकला पर तानाशाही और परिजनों को गलत तरीके से फायदा पहुंचाने के आरोप भी कम नहीं लगे थे. लेकिन आधुनिक गोवा को खड़ा करने में दयानंद-शशिकला का योगदान भी कम नहीं है.

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