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CAG ने दिल्ली सरकार के विज्ञापनों और डेंगू के लिए फंड के इस्तेमाल में बताईं कई गड़बड़ियां

नई दिल्ली : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने आम आदमी पार्टी की सरकार में हुए तीन गुना विज्ञापन खर्च और डेंगू से निपटने के लिए सरकार की तैयारियों पर आॅडिट रिपोर्ट दिल्ली सरकार को सौंप दी है.
कैग ने दिल्ली विधानसभा के समक्ष रखने के लिए चार रिपोर्ट जमा की हैं. अन्य दो रिपोर्ट वित्त से संबंधित हैं. ये रिपोर्ट 10 मार्च को खत्म हो रहे दिल्ली विधानसभा के पांच दिनी बजट सत्र में पेश की जानी हैं.
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के तीनों नगर निगमों ने डेंगू की रोकथाम के लिए न किसी प्रयोगशाला का गठन किया और न ही इसकी रोकथाम के लिये कोई मानक प्रचालन प्रकिया तैयार की. नगर निगमों ने घरों में लार्वा मानिटरिंग के लिये 104.93 करोड़ का खर्च किया लेकिन 3358 ऐसे लोगों को इसके लिये काम पर लगाया जो इस काम में कुशल नही थे. यहां तक की उनके कामों की कोई निगरानी भी नहीं की गई.
खर्चे की नहीं हुई निगरानी
रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2013-2016 के दौरान मच्छरों को नियंत्रित करने के लिये जरूरी उपकरण और कीटनाशकों के लिये 88.26 करोड़ रुपये का खर्च किया गया लेकिन इसकी निगरानी के लिए निश्चित नीति तैयार नहीं की गयी. कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिये सही मोहल्ले या परिसरों को मार्क भी नही किया गया.
दिल्ली छावनी बोर्ड में साल 2013-14 से साल 2015-16 के दौरान मच्छरों के नियंत्रण के लिए 1.80 करोड़ आवंटित किए गए जिसमें से 74% निधी का उपयोग नहीं हुआ. इसके लिये बोर्ड ने न कोई योजना तैयार की और न ही ठीक प्रकार से इलाके में फॉगिंग की गई. छिड़काव की दवाई भी सब स्टैंडर्ड की थी. जिस दवाई की जरूरत नहीं थी उसका भी इस्तेमाल किया गया.
गलत समय पर दिए विज्ञापन
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने 22436 मामलों की ही जानकारी दी जबकि अस्पतालों में डेंगू के 67578 पॉजिटिव मामले सामने आए. साल 2015 में डेंगू से मौत का आंकड़ा 409 दिया गया जबकि समीक्षा समिति ने 60 मौतों की ही पुष्टि की.
दिल्ली सरकार ने 2013-14 से 2015-16 के दौरान डेंगू की रोकथाम के लिये जागरुकता अभियानों पर 10.04 करोड़ रुपये खर्च किए लेकिन ये विज्ञापन सितंबर और नवंबर महीने के बीच यानी डेंगू की बीमारी बढ़ने के बाद जारी किए गए, जिन्हें उस समय देने का कोई मतलब नहीं. इसी तरह दिल्ली नगर निगम ने भी हर साल मानसून के बाद अक्टूबर में जनजागरुकता अभियानों की शुरूआत की.
सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों को बेहतर करने के दिल्ली सरकार के दावे की पोल भी कैग ने खोली है. कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे स्कूलों में क्लास 1 में 2010-11 में जहां 2 लाख से ज्यादा बच्चों ने एडमिशन लिया वहीं, 2015-16 के दौरान यह 23 प्रतिशत तक गिर गया और इस साल महज डेढ़ लाख के करीब बच्चों ने ही सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया.
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